* भावना स्नेह की *
** गीतिका **
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भावना स्नेह की क्यों छिपाते रहे।
खूबसूरत अधर मुस्कुराते रहे।
देखकर डालियों पर खिले फूल हैं।
गीत हम स्नेह से गुनगुनाते रहे।
मधुर खूब ऋतुराज का रूप है।
दूरियां मिट गयी पास आते रहे।
कोंपलों से भरी टहनियां पेड़ की।
नित्य झोंके हवा के हिलाते रहे।
हर कली चाहती खिल उठूं शीघ्र ही।
प्रीति की चाह मन में जगाते रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य