भावना की पीड़ा
ह्रदय में रहती थी वोह ,
कभी प्रेम व् त्याग बनकर ।
ईश्वर द्वारा इंसान को ,
दी गयी जो अमूल्य धरोहर बनकर ।
परन्तु आधुनिकता में हुआ ,
बुद्धि का ऐसा योग ।
बुद्धि का ही करने लोग ,
जग में सब उपयोग ।
भावनायों की भाषा और ,
भावनायों के सभी रूप
पूंजीवादीता ने कर दिया इसे कुरूप ।
अब पूछो इन मशीनों ( इंसानों ) से ,
तुम्हारी पहचान क्या है ?
प्रेम, करुणा ,दया के प्रति ,
जिनके ह्रदय में नहीं स्थान है ।
वोह मानव मानव नहीं ,
वो एक मरघट के सामान है ।