भावनाओं से खिलवाड़
व्यंग्य
भावनाओं से खिलवाड़
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अपने बड़े बुजुर्गों, संत महात्माओं से
बचपन से सुनते आ रहे हैं
कथा कहानियों, धार्मिक ग्रंथों में
वर्षों से अब तक यही पढ़ते आ रहे हैं,
कि किसी की भावनाओं से
खिलवाड़ करना पाप है,
हम भी तो यही अनुसरण कर रहे हैं
तभी तो सिर पर हाथ धरे रोज रो रहें हैं।
जमाना कितना बदल गया है साहब
ये सब अब किताबी बातें हो गई हैं
प्रवचनों, भाषणों में ही अच्छी लगती हैं,
आज धरातल पर सिर्फ अपवाद स्वरूप दिखती हैं
द्वापर, त्रेता, सतयुग गुजरे कितना अरसा हो गया
हम आप कब तक बीते युगों को ढोते रहेंगे
लीक पकड़कर चलेंगे तो सदा पीछे ही रहेंगे।
समय के साथ अब खुद को बदलिए,
भावना, खिलवाड़, पाप की कैद से निकलिए।
आधुनिकता की चाशनी में लिपटना सीखिए
हर किसी की भावनाओं का खून करना सीखिए।
वरना जीवन भर रोते रहे जायेंगे
जीने के जुगाड़ में ही जीवन गुजार देंगे
फिर जीवन का मजा आखिर कब उठायेंगे?
नीति, अनीति, न्याय, धर्म ,पाप पुण्य के चक्कर में
उलझ कब तक जीवन ढोते रहेंगे?
हर किसी की भावनाओं से जब
खिलवाड़ करना सीख जाएंगे,
तभी आज के युग में बच पायेंगे।
विलंब मत कीजिए अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है
वरना केवल बेवकूफ होने के तमगे ही पायेंगे
जीवन सिर्फ अभावों में ही बीत जाएंगे
आपके अपने भी आपको दुत्कार देंगे,
और सदा के लिए आपसे दूर हो जायेंगे।
तब आप भावना, खिलवाड़, पाप का
सिर्फ झुनझुना बजाते ही रह जायेंगे,
कोई न होगा पास अकेले रह जायेंगे।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित