भारत रत्न डॉ.बी.आर. आम्बेडकर के जीवन से पांच सबक – आनंदश्री
भारत रत्न डॉ.बी.आर. आम्बेडकर के जीवन से पांच सबक – आनंदश्री
-संघर्ष और महान सफलता की गाथा है भीम गाथा
हर दौर में महामानव का जन्म होता है जो मनुष्य को एक नई दिशा, नया नेतृत्व और नई मिसाल दे कर जाता है । मानव रहकर मानवता को प्राप्त कर महामानव बन जाता है।
बाबासाहेब ने अपने पूर्ण जीवन से बता दिया कि शिक्षा के आधार पर मनुष्य प्रगति कर सकता है। ज्ञान अर्जित कर वह नए समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकता है इसलिए वह कहते थे कि 10 रुपये मिले तो 2 रुपये का भोजन और 8 रुपये की पुस्तक खरीदना।
उनके जीवन के प्रमुख पाठ हैं जो हर कोई डॉ.बी.आर. आम्बेडकर से सीख सकता है।
अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करें
बाबा साहेब कहते थे “पानी की एक बूंद, समुद्र से जुड़ने पर अपनी पहचान खो देती है, लेकिन मनुष्य उस समाज में अपना अस्तित्व नहीं खोता जिसमें वह रहता है।”
अपनी अभिव्यक्ति करते रहे। यह तुम्हे साहस, नई पहचान अपनी स्वयम की खोज कराएगी। हम जिस भी समाज मे रहते है , उसकी सेवा और उत्थान करते रहे। अभिव्यक्ति करते रहे।
जाति से नही बल्कि कर्म से इंसान महान महान बनता है
गुब्बारा आसमान में उड़ता इसलिए नही की वह कोई विशेष रंग, डिज़ाइन, आकार, का होता है, बल्कि वह आसमान की उड़ान उड़ता है उसके अंदर की हवा से। इंसान भी महान बनता है कि उसके अंदर क्या है, चाह क्या है, विचार क्या है, बुद्धि और ज्ञान क्या है।
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” – शिक्षा ही सफलता की कुंजी है। बाबासाहेब एक विपुल छात्र थे, जिन्होंने कुछ भी नहीं होने दिया, या किसी ने खुद को अच्छी तरह से शिक्षित करने के लिए रास्ते में आने के लिए और वास्तव में, कॉलेज खत्म करने के लिए एक असुविधाजनक खंड से पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने कानून, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अपने शोध के लिए एक विद्वान के रूप में ख्याति प्राप्त की। एक उत्कृष्ट कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञ होने के नाते, डॉ। अंबेडकर को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने की भूमिका सौंपी गई थी।
“मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।” – बाबासाहेब ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के कारण के लिए शिक्षा को अपने उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं को सशक्त बनाने के माध्यम से ही समाज प्रगति कर सकता है। इसलिए, उन्होंने उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए महिलाओं के अधिकार का जोरदार समर्थन किया। इतना ही नहीं उन्होंने कई पुस्तकों को भी लिखा और मानव अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने सभी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बात की और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने महिला उत्पीड़न के खिलाफ एक आंदोलन चलाया। उन्होंने आजादी से बहुत पहले 100 साल पहले मातृत्व लाभ की वकालत की थी। न केवल वह मातृत्व अवकाश के बारे में बात करने वाले भारत के पहले व्यक्ति थे, बल्कि वे सभी के लिए ‘समान काम के लिए समान वेतन’ के लिए आवाज उठाने वाले पहले व्यक्ति भी थे।
“जीवन लंबे समय के बजाय महान होना चाहिए” – यह आमतौर पर माना जाता है कि सभी का एक अस्थायी अस्तित्व है और जीने के लिए एक जीवन है और इस जीवन को हम जो बनाते हैं वह हमारे उद्देश्य और पथ को परिभाषित करता है। एक उद्देश्य अपने साथ यह जानने की जिम्मेदारी भी लाता है कि आपके होने से कुछ बड़ा है। अधिकांश सफल लोग अपना जीवन उद्देश्य के साथ जीते हैं, जिससे वे केंद्रित और दृढ़ बने रहते हैं। युवा अंबेडकर को एक ही कक्षा में बैठने और एक ही कुएं से पानी पीने की अनुमति नहीं थी। लेकिन इससे वह शिक्षित होने के लिए अपने उद्देश्य से नहीं हिले और उसने इस शिक्षा का उपयोग करके एक बदलाव लाया जिसे वह देखना चाहता था, जिससे वह अपने समय के असाधारण नेताओं में से एक बन गया।
आप किस घर मे, किस परिवार में भी जन्म लिए हो, लेकिन मुद्दा यह है कि आप जा कहां रहे हो, बनना क्या चाहते हो।
प्रो डॉ दिनेश गुप्ता- आनंदश्री
आध्यात्मिक व्याख्याता एवं माइन्डसेट गुरु
मुम्बई
8007179747