भारत रत्न की कतार
व्यंग्य
भारत रत्न की कतार
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हमारे आपके जीवन में
बहुत बार ऐसा होता है
कि हम अपने हालातों परिस्थितियों से
निराशा के भंवर में फंस जाते हैं
लाख हौसलों के बाद भी हारने लगते हैं।
उम्मीदों की किरणें भी ओझल होने लगती हैं,
कोई कितना भी समझाया है
दिमाग में घुस तक नहीं पाती है,
और हम भड़क जाते हैं उसी पर
जो हमें हौसला देने का प्रयास करता है
वो हमें शुभचिंतक से ज्यादा तब दुश्मन लगता है
और तब हम भड़क जाते हैं।
उसे अपमानित करने का प्रयत्न भी करते हैं
साथ ही उसको ही नसीहत देने लगते हैं,
दूसरों को समझाना बड़ा आसान है
पर खुद पर जब पड़ता है तब
यही समझना सबसे मुश्किल होता है।
वास्तविकता से मुंह मोड़ना कठिन है
क्योंकि जीवन का सच भी तो यही है।
अब यह हम पर आप पर निर्भर है
कि हम अपने हालातों परिस्थितियों से लड़ते हैं,
या अपना जीवन हार जाते हैं
अपनों को नासूर सा जख्म दे जाते हैं,
जब गुमराह होकर अपना जीवन छोड़ जाते हैं,
और तब कायर ही नहीं बेवकूफ भी कहलाते हैं
क्योंकि हम जीवन के झंझावातों से
जूझने का जज्बा नहीं दिखा पाते हैं
जीवन को पीठ दिखा जाते हैं,
शायद ऐसा करके हम आप
भारत रत्न की कतार में आ जाते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित