भारत में राजनीतिक आपातकाल
प्रिय मित्र और भाई कह रहे है रामकिशन जैसा भी था आखिर था तो फौजी उसपे मत लिखो …….. लेकिन मुल्क के हालात मुझे लिखने को मजबूर कर देते हैं ……..
सीमा पे छाती पे गोली खाने वाले को महज 10-5 लाख और और सल्फास खाने वाले को एक करोड़ …….. बॉर्डर पे कर्तव्य निर्वाह कर प्राणों की आहुति देने वालों से सबूत मांगे जाए ……… जंतर मंतर पे महज़ 2-4 हज़ार रुपल्ली के लिए जान देने वाले को एक करोड़ और शहीद का दर्जा दिया जाये ………
फिर क्यों ना लिखूं मैं रामकिशन पे ?? ………
शहीद हनुमंतथप्पा सियाचिन में हज़ारों टन बर्फ के नीचे प्राणों की आहुति देते हैं …….. मनदीप का शव दिवाली के दिन घर आता है ……… उड़ी में नींद में सोये सपूतों को जान से मारा जाता है ……… रोज़ वतन की सरहदों पे हमारे भाई दुश्मन की गोली खा के शहीद हो रहे हैं ……… मुझे उनपे गर्व है ना कि रामकिशन पे ……… फिर क्यों ना लिखूं मैं रामकिशन पे ………
तिरंगे में लिपट के रोज़ जवानों के शव घर आते है …….. बूढ़े माँ बाप जवान पत्नी छोटे भाई बहन और मासूम बच्चों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है ……..
रामकिशन सरपंच था ……… लाखों का कर्जदार ……… शौचालय घोटाला ……… OROP जैसे आधारहीन मुद्दे पे सल्फास खा के आत्महत्या ……… परिवार को एक करोड़ बेटे को नौकरी ……….
क्यों भाई किस बात के दे रहे हो रामकिशन दामाद था तुम्हारा ………. जितना सम्मान आप करते हो ना सेना का उतना मैं भी करता हूं ……… जितने आप देशभक्त हो ना उतना देशभक्त मैं भी हूं ……… सेना और देश के प्रति मेरी निष्ठा पे सन्देह ना करें ……… मैं यहाँ किसी को खुश करने या चंद लाइक कमेन्ट पाने के लिए नहीं लिखता हूं ……… जो सच्च है वो लिखता हूं ………
मेरे लिए शहीद हनुमन्तथप्पा और मंदीप है ……… सरहद पे गोली खाने वाला हर एक जवान मेरे लिए देशभक्त है …….. पूजनीय है …….. आदरणीय है ……… सल्फास खा के राजनीतिक आत्महत्या करने वाले को मैं ना फौजी मानता हूं ना योद्धा ……… योद्धा कभी मरते नहीं है लड़ते है हालातों से ……… आखिरी सांस तक डट के मुकाबला करते है हालातों का !!!! ………
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