भारत में भीख मांगते हाथों की ۔۔۔۔۔
क्या आपके दस, बीस, पचास, सौ रुपए की भीख देने से अल्लाह या भगवान खुश हो जाता है. ? क्या आपके द्वारा दान की गई इस अल्प रिश्वत के बदले वह आपके पापों को नष्ट कर देता है.? बहुत मूर्खता पूर्ण बात है कि जिसने इस सृष्टि की रचना की है वह धर्म के नाम पर आपकी तुच्छ दान दक्षिणा अभिलाषी होगा. ?
क्या धर्म के नाम पर दान वीरता दिखा कर हम निठल्ले, नकारा लोगों की भीड़ इक्ट्ठा नहीं कर रहें हैं.? क्या ऐसा करने से ऊपर वाला खुश होता है.? माना सभी धर्मों में दान की प्रथा को बहुत महत्व प्रदान किया गया है लेकिन क्या यह उचित है ? और इसमें कोई संदेह नहीं कि इस दान देने की प्रवृत्ति के चलते ही हमारे देश की लगभग एक प्रतिशत जनसंख्या भिखारियों में परिवर्तित हो गई है जो कि हमारी धार्मिक प्रवृत्ति का ही परिणाम है और इन भिखारियों का इतनी बड़ी संख्या में होना हमारे देश की छवि को कितना धूमिल करता है वो अलग से सोचने का विषय है ,बहरहाल हम इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं। कि आज आर्थिक रूप से मज़बूत होने के उपरांत आज भी हमारा देश , नकारा, निठल्ले, गरीब लोगों का देश कहलाता है, और स्थिति यह है कि यह समस्या अपराधिक घटनाओं को ही नहीं बल्कि मानव तस्करी जैसे गंभीर अपराध को भी प्रोत्साहन प्रदान कर रही है, जबकि इस समस्या को उत्पन्न करने में सरकार ही नहीं बल्कि हम लोग भी दोषी है, सरकार ने भी भिक्षावृति को कानूनी रूप से अपराध तो घोषित कर दिया है लेकिन इस समस्या के पीछे छिपे कारणों को जानने और उनका उचित समाधान ढूंढने का, कोई ठोस प्रयास अभी तक नहीं किया है जो कि शर्मनाक होने के साथ निंदनीय भी है, सरकार को समझना होगा कि कानून बना देने से इस गंभीर समस्या का समाधान नहीं होने वाला, वैकल्पिक रोज़गार की व्यवस्था किये बिना भिखारियों को उनके व्यवसाय से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि यह विकृति बेरोजगारी और गरीबी से ही उत्पन्न होती है।
कितना अच्छा हो कि हम लोग धर्म की वास्तविकता को समझें, केवल दिखावे और पापों को नष्ट करने के लोभ में देश में अकर्मण्य लोगों की संख्या में वृद्धि न करें, लाखों करोड़ों मंदिरों, मस्जिदों के निर्माण में व्यय करने के विपरीत वह पैसा यदि हम ज़रूरत मंद बेरोज़गारो को रोज़गार, निराश्रितो को आश्रय स्थल उपलब्ध करवाने में व्यय करें, भूखे लोगों को खाना खिलाने व वस्त्रहीन लोगों के तनो को ढकने का माध्यम बने, कुछ ऐसा प्रयास करें कि भीख मांग कर अपना जीवन यापन करने वाले लोगों में स्वाभिमान के साथ मेहनत करके पेट भरने की इच्छा उत्पन्न हो जाये। ….. वैसे देखा जाए तो संसार ने इतनी प्रगति तो कर ही ली है कि आज संसार का कोई व्यक्ति भूखा तो दूर भिखारी भी नहीं होना चाहिए और न कोई बिना छत का, इसके उपरांत भी भिक्षावृति एक गंभीर और चिंता का विषय है और समस्या के समाधान निकाले बिना डिजिटल भारत का सपना… सपना ही रह जायेगा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
डॉ फौज़िया नसीम शाद