भारत माता तुम्हें बुलाती
वीरों की शहादत के बदले
हमने आजादी पाई थी।
बरसों अंग्रेजों का जुल्म सहा
तब हमने आजादी पाई थी।
त्राहि-त्राहि चहुं ओर मची थी
कितने मासूमों ने जान गंवाई थी।
कितने फांसी के फंदों पर झूले
कितनों ने अंग्रेजों की नींव हिलाई थी।
हम भूल गए उनकी कुर्बानी
और कहानी जुल्मों की।
स्वार्थ में अंधे होकर अब
दोहराते कहानी जुल्मों की।
ना रिश्तों में मिठास रही
ना नेकी का अब नाम रहा।
चलते सारे अपनी कुटिल चाल
बस प्यादा ही लाचार रहा।
ना देश-प्रेम की बात रही
ना गांधी वाली बात रही।
आज की युवा पीढ़ी यारो
पश्चिम की ओर ही भाग रही।
भारत माता तुम्हें बुलाती
वतन परस्ती का जानो मोल।
कहीं पश्चिमी संस्कृति की आबोहवा
पिला न दे तुम्हें अनर्गल घोल।