भारत माता की संतान
मां का गौरव रहे अमर, इसका नित ध्यान किया है,
अमृत सारा छोड़ के हमने, विष का पान किया है,
हमने प्राणों की ज्वाला से, मां की जोत जलाई,
शोणित की नदियों में बहकर, निर्मलता अपनाई,
केसरिया साफा मस्तक पर, स्वाभिमान हर्षाए,
मां के वंदन में वीरों ने, लाखों भाल चढ़ाए
बहन बेटियों के आंचल को, गंदा नहीं किया है,
प्राण गए पर इस धरती का, धंधा नहीं किया है,
दूध पिलाती माता ने, नित स्वाभिमान बतलाया,
शस्त्र खिलौने हाथों में, वीरों का गान सुनाया,
समरांगण में निर्भय होकर, आगे कदम बढ़ाना,
मर जाए पर नहीं सिखाया, डरकर पीठ दिखाना,
स्वयं चन्द्रमा आकर पहले, तन को शीतल करता हो
जिस धरती के दर्शन करके, दिनकर वंदन करता हो,
जिसके गौरव स्वाभिमान को, दसों दिशाएं गाती हो,
बलिदानों के शोणित का, मस्तक पर तिलक लगाती हो,
जिसने पहनी मातृभूमि हित, विपदाओं की माला,
सदा शिखर पर गढ़ा रहें वो, स्वाभिमान का भाला,
बहनों के आंचल को देकर, रत्नों को अपनाया,
बोलो कब हमने बच्चों को, झूठा पाठ पढ़ाया,
कब माटी से ऊपर हमने, दौलत को तोला हैं,
जो हैं सत्य उसे निर्भय हो, कर हमने बोला है,
रामायण भगवत गीता का, हमने ज्ञान दिया है
जग को अमृत देकर हमने, विष का पान किया है,
वन में वास किया हमने,सागर में बांध बनाया,
बाल्यकाल में माता को, मुख में ब्रम्हांड दिखाया,
कण कण में परमाणु है, दुनिया को बोध कराया,
शुन्य दिया हमने दुनिया को, गणना ज्ञान सिखाया
पापी रावण की लंका में, जाकर आग लगाई,
दुष्ट पापियों को हमनें, उनकी औकात दिखाई,
श्री राम की रामायण, केशव का गीता ज्ञान हमीं,
भरत वर्ष में मर्दन करने वाले, परशुराम हमीं,
जहां नर में राम समय है, नारी में बसती सीता है,
आदर्श सिखाती रामायण, तो राहें भगवत गीता है,
कल्याण विश्व का हो बोलें, उन मुनियों का संदेश हमीं
रामायण के वचन हमीं, और गीता का उपदेश हमीं,
किंचित देरी किए बिना जो, भाल चढ़ाने वाली हो,
स्वामिभक्ति में माए खुद के, लाल चढ़ाने वाली हो,
त्याग, शौर्य, बलिदान, प्रेम, नित गाऊ जिसके गान को,
दुनियां भी नतमस्तक करती, अपने हिंदुस्तान को,
मैं घोषणा करता हूं कि प्रस्तुत रचना मेरी मौलिक, स्वरचित, अविवादित है,
रवि यादव, कवि
कोटा, राजस्थान
9571796024