भारत माता का दिल
अब मैं कितना और कब तक ,
शर्मसार होता रहूं ,
और कितनी बार दहल जायूं।
ना हादसे रुकते हैं ,
ना हालात बदलते हैं।
और मैं कितना इंतजार करूं ?
मेरी बेटियों ,बहनों और माताओं ,
के साथ होते है हर रोज नया खौफनाक ,
शर्मनाक गुनाह ।
उनके लिए इंसाफ का इंतजार ,
मैं और कितना करूं ,?
मैं मां हूं ,भारत मां ,
इंसान नहीं ,
हूं सारे जहां में जमीन का एक टुकड़ा ,
मगर पत्थर तो नहीं हो सकती ।
अपने दुखी और संतप्त ह्रदय का ,
मैं क्या करूं ,?
क्या सरकार को इससे कुछ फर्क पड़ता है,
क्या गोदी मीडिया का शोर थमता है ?
ना ही स्वार्थी नेताओं को इससे कुछ वास्ता है ।
जनता ही गहरे दुख में डूबती है ,
शर्म सार भी होती है ,
और मेरी ही तरह उनका भी कलेजा दहल जाता है।
क्योंकि इन हादसों का करीबी रिश्ता ,
जनता से ही हैं
है ना ?