भारत भूमि
भारत भूमि
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अपने इस भारत की भूमि में,शुभता की परिपाटी है।
जहाँ धर्म सनातन के कारण,हर घर में मोक्ष मुहाटी है।
जहाँ सकल जगत महकाने वाली,पावन केसर घाटी है।
हम प्राण समर्पित करते जिसमें, चंदन जैसे माटी है।
जहाँ राम कृष्ण की गाथाएँ,तन मन से गायी जाती है।
तैतीस कोटि देवों सम गाये, हर घर में पाई जाती है।
जहाँ वीर खड़े है सीमा पर,उनको मैं शीश झुकाता हूँ।
मैं जिस भारत का बेटा हूँ,उसकी ही महिमा गाता हूँ।
जहाँ जग का प्यास बुझाने वाली,बहती पावन गंगा है।
जिसमें पूरा भारत बसता है,अपना पुण्य तिरंगा है।
जहाँ अडिग हिमालय ढाल बना,हम सबकी रक्षा करता है।
चारों वेदों की पावनता, नित धर्म समीक्षा करता है।
जहाँ दूर सदा रहते सतकर्मी, जग के लाग लपेटो से।
आशा नित ही करते है हम,निज घर में बेटी बेटों से।
जिस धारा में बस प्रेम बहे,मैं वह ही धार बहाता हूँ।
मैं जिस भारत का बेटा हूँ,उसकी ही महिमा गाता हूँ।
जहाँ मंदिर मस्जिद गिरजाघर,गुरुद्वारे संग संग दिखते है।
इस भारत की शुभता समता पर,कविवर कविता लिखते है।
जहाँ लोकतंत्र की रीति में,हर जन को है सम न्याय मिला।
भूखा न कोई रह जाये , इस कारण सब को आय मिला।
नीले अम्बर से धरती तक,गूंजा जय जय कारो में।
अपना यह भारत अमर रहे की,सत्य सनातन नारों में।
मैं भी भारत की जय कहकर,एक शांति अलौकिक पाताहूँ।
मैं जिस भारत का बेटा हूँ,उसकी ही महिमा गाता हूँ।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर” ✍️✍️✍️