भारत क्या भूल जायेगा?
शाहीन बाग के प्रपंच को,
जेएनयू के उस मंच को।
एएमयू की द्रोही धरती पर
कब्र खोदने वाली भीडतंत्र को,
तेरा मेरा रिश्ता क्या,
रटे जा रहे तेरे मंत्र को।
भारत क्या भूल जायेगा।
एक बेवजह के विरोध को,
दिल्ली की आतंकी प्रतिशोध को,
सड़कों के गतिरोध को,
रतन, अंकित और विनोद को,
भारत क्या भूल जायेगा।
अरे ढपोर शिरोमणि,
ये सब भी तो याद रखा जायेगा।
अंधेरे की परवरिश में
चांद ही लिखा जायेगा।
चोरों की जमात से
तो दिवार फांद ही लिखा जायेगा।
कन्धे पर क़ब्रगाह ढोने वाले भूत बनकर लिखोगे
तो बनकर अन्जनेय तेरे पापों का हर सूबूत लिखा जायेगा।