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15 May 2024 · 2 min read

भारत को फिर से स्वर्ग बना

रचना नंबर। (25 )

विधा…प्रार्थना गीत

भारत को फिर से स्वर्ग बनाना है

सहमा-सहमा सा मानव है
महामारी का ताण्डव है
भयाक्रांत सिहरा-सिहरा
संसार का कोना-कोना है
चौक चौबारे सूने हैं
हर घर भी है सूना-सूना
जीवन भी मानो है ठहरा
हे नीलकंठ हे अखिलेश्वर
ऐसा करतब दिखलादो ना
जहर कहर सब पीकर तू
भारत को फिर से स्वर्ग बना

आतंकित है जर्रा-जर्रा
मंदिर मस्ज़िद व गुरुद्वारे
खून की नदियां बहे देश में
विस्फोट कभी भी हो जाए
संसद भवन होटल्स मॉल्स
कब कहाँ कुछ भी हो जाए
सीमा पर तैनात सिपाही
शहीद कभी भी हो जाए
हे पवनपुत्र हे महावीर
बल शक्ति का दे दो वरदान
भारत को फिर से स्वर्ग बना

लहू लुहान दुधमुंही बेटियां
अति पीड़ा से कराह रही
बचपन से पचपन अबलाएं
दुष्कर्म का फल भोग रहीं
सरे राह चौराहों पर होता
महिलाओं का चीरहरण
कानूनी गलियारे संकरे
अति कठिन है निराकरण
हे कर्मवीर हे करुणाकर
ऐसी अब तू बांसुरी बजा
सुन पुकार द्रोपदियों की
भारत को फिर से स्वर्ग बना

बिन शिक्षा और योग्यता के
अच्छा पेशा बनना नेता
कुर्सी मिल जाए एक बार
तो खा जाए पत्ता-पत्ता
सात पीढ़ियां तर जाए
जो हाथ में आ जाए सत्ता
नेताओं की प्रतिस्पर्धा में
पिस रही बेचारी है जनता
हे पुरुषोत्तम हे रामचंद्र
मर्यादा के उन संदेशों से
भारत को फिर से स्वर्ग बना

जो सबका है अन्नदाता
फांसी को गले लगाता है
दीनू के घीसू की हालत
साहब के टॉमी से बद्तर है
फसलों का नहीं मूल्यांकन
ऋण माफ़ी का प्रलोभन है
हे लालबहादुर आकर के
स्वावलम्बन का पाठ पढ़ा
श्रम का प्रतिफल सुचारू हो
भारत को फिर से स्वर्ग बना

हे महाकाल ओंकारनाथ
हे सोमनाथ हे घुश्मेश्वर
भीमाशंकर हे बैजनाथ
हे ममलेश्वर हे नागेश्वर
मल्लिकार्जुन केदारनाथ
हे विश्वनाथ हे रामेश्वर
ऐसा कोई चमत्कार दिखा
भारत को फिर से स्वर्ग बना

स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर

पी एस
मेरी 25 रचनाएं प्रेषित हो चुकीं हैं।
और भेजूं क्या सर

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