भारत के नव-निर्माण में श्रीमद्भगवद्गीता का योगदान (Contribution of Shrimad Bhagwat Gita in the reconstruction of India)
समकालीन युग में संसार में सर्वाधिक लोकप्रिय, सर्वाधिक समन्वयात्मक, सर्वाधिक उपयोगी, सर्वहितकारी, सर्वकल्याणकारी एवं धर्म व विज्ञान दोनों क्षेत्रों के विचारकों द्वारा समान रूप से पसंद किया जाने वाला यदि कोई ग्रंथ है तो वह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ है। आजकल विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, योग, चिकित्सा, प्रबंधन, व्यापार, पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, शैक्षिक एवं अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव व भ्रातृत्वभाव में वृद्धि करने के क्षेत्र के विचारक व सुधारक सभी के सभी इस ग्रंथ की तरफ आशाभरी दृष्टि से देख रहे हैं । इस ग्रंथ की तरफ वे आशाभरी दृष्टि से देख ही नहीं रहे हैं अपितु उपरोक्त में से हरेक क्षेत्र के बुद्धिजीवी, विचारक, लेखक, कवि, शिक्षक, साहित्यकार, दार्शनिक एवं वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति अपनी समस्याओं का मार्गदर्शन भी प्राप्त कर रहे हैं । श्रीमद्भगवद्गीता की प्रत्येक क्षेत्र में लोकप्रियता कोई प्रचार-प्रसार के बल पर न होकर इसके व्यावहारिक पहलूओं के कारण है । इस धरा पर आज तक ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के समान कोई पुस्तक अब तक लिखी ही नहीं गई कि जिससे प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्ति मार्गदर्शन एवं मदद प्राप्त कर सकें । पिछले पांच हजार वर्ष से इस वसुंधरा पर केवलमात्र सात सौ श्लोक में निबद्ध ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है कि वैज्ञानिक, दार्शनिक, तार्किक, समाजसुधारक, धर्मगुरु, योगाचार्य, लेखक, साहित्यकार, कवि, व्यापारी, शिक्षाशास्त्री, नीतिशास्त्री, प्रबंधन के विशेषज्ञ एवं पश्चिम व पूर्व के लोग समान रूप से जिसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रहे हैं । इस तरह से प्रत्येक क्षेत्र के व्यक्तियों द्वारा इस ग्रंथ की प्रशंसा करना निरर्थक न होकर सार्थक ही है । विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों एवं भारतीय विश्वविद्यालयों के विभिन्न विभाग अपने-अपने विभागों में इस ग्रंथ को सम्मिलित कर रहे हैं ताकि वे इससे उपयोगी मार्गदर्शन प्राप्त करके अपने साथ अन्यों का कल्याण करने की सीख अपने छात्रों को प्रदान कर सकें ।
यह संसार संघर्ष, विरोध, प्रतियोगिता, निषेध एवं नकारात्मक के बिना चलना असंभव है । लेकिन इस सांसारिक संघर्ष, विरोध, प्रतियोगिता, निषेध एवं नकारात्मकता के मध्य करूणा, दया, प्रेम, भ्रातृत्वभाव, भाईचारा, अहिंसा, सत्य, वसुधैवकुटुंबकम् आदि सार्वभौम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जाए ताकि समस्त विश्व के लोग संयम, शांति व सह-अस्तित्व से रह सकें? इस तरह के प्रश्नों व समस्याओं के समाधान हेतु इस धरा पर एकमात्र ग्रंथ है । ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ केवल व केवल यही एकमात्र ऐसी पुस्तक है जिसका लेखन व जिसकी रचना युद्ध के मैदान पर हुई थी । संसार में ऐसी पुस्तक अन्य कोई भी नहीं है ।
युद्ध के मैदान पर रचित कोई ग्रंथ यदि युद्ध के साथ शांति की बातें करे तथा जीवन व जगत् से संबंधित प्रत्येक प्रश्न व शंका का समाधान प्रस्तुत करे तो वह ग्रंथ विचित्र एवं लोकप्रिय तो होगा ही । संसार में रहते हुए कोई व्यक्ति चाहे वह किसी भी क्षेत्र काव्यों न हो उसकी हरेक जिज्ञासा का समाधान ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में मौजुद है । भौतिक, राजनीति, प्रशासनिक, व्यावहारिक, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक, यौगिक आदि सभी क्षेत्रों में पारंगत भगवान् श्रीकृष्ण ने विषाद, मोह, माया एवं संबंधों से घिरे अर्जुन को अपना गीतारूपी उपदेश देकर ऐसा तृप्त किया कि वह उपेदश किसी भी क्षेत्र की समस्याओं से घिरे व्यक्ति के काम का सर्वकालिक एवं सर्वस्थानिक उपदेश सिद्ध हो रहा है । हमारी सारी समस्याएं हमारी मनःस्थिति या हमारे दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है । लोग समस्याओं को समाधान बाहर खोजते हैं जबकि इन सबका समाधान हमारे चित्त में मौजुद है । परिस्थिति नहीं अपितु मनःस्थिति बदलना है । यदि यह बदलना आ जाए तथा अपने प्रत्येक कर्म को निष्काम-भाव से संपन्न किया जाए तो व्यक्ति कभी भी हताशा, कुंठा, तनाव, चिंता, द्वेष, बदले की भावना, हिंसा आदि से ग्रस्त नहीं होगा । ऐसा व्यक्ति ही इस वसुंधरा को सुखी, संपन्न, संतुष्ट, वैभवपूर्ण, प्रेमपूर्ण, करूणापूर्ण एवं आनंदित बना सकता है । यह सब अर्जित करने में ‘श्रीमद्भगवद्गीतारूपी भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से निःसृत उपेदश’ हमारी सर्वाधिक मदद कर सकता है और आज हमारे इस जगत् को इसीलिए ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को समझने, इसका प्रचार-प्रसार करने, इसे जीवन में उतारने एवं उच्च शिक्षा-संस्थानों में इसके अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करने की त्वरित जरूरत है । हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर से दुनिया का ध्यान इस ग्रंथ की तरफ खींचा है । महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, दामोदर सावरकर, जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे आदि सभी राजनेता संकट एवं दुविधाग्रस्त होने पर सदैव इस ग्रंथ का अध्ययन करके मार्गदर्शन प्राप्त करते थे ।