भारत की हुंकार
एक रोज़ यहां महफ़िल सजी वीर रस के मुशायरों की,
जंग छिड़ी जहां जुबानों से और बहस हुई क्रांति भरे विचारों की,
शुरू हुई जो बात क्रांति की वो आजाद भगत पर रुक गई,
उदहारण देना है आज के नौजवानों को वीरता का तो महाराणा पर बात रुक गई,
देखा इतिहास जब हमने अपना तो अचंभा यहां सभी को हुआ,
क्यूंकि पूरा इतिहास भारत वीरों की शौर्य गाथा से भरा पड़ा,
खंजर खाए पीठ पर हमने कितनी ही बार अपनों के हाथो से,
पर हर बार उठ खड़े हुए हम अपने स्वाभिमान के भरोसे से,
सोचा सभी ने क्यूं इतनी पुरानी बातों को यहां आज याद किया गया,
भूल गए सब अस्तित्व यह अपना यहां इसलिए याद सभी को दिलाना पड़ा,
दुश्मन खड़े है जो द्वार पर हमारे तब भी आपसी मतभेद हमें दिखाई दे रहा,
दुश्मन से लड़े तो लड़े कैसे जब अपनों ने ही हमें शक के घेरे में खड़ा किया,
हारे थे जो 62 का युद्ध हम वो अपमान आज तक सबको याद रहा,
लेकिन जीते कितने ही युद्ध हमने उस वीरता को सभी ने भुला दिया,
कान खोल कर सून लो गद्दारों यह भारत वासठ वाला अब न रहा,
चाहा अगर कब्ज़ा करना हमारी जमीन पर तो तुमसे तुम्हारा घर भी छीना जाएगा,
दिखा लेना आराम से एक दूजे को नीचा भले बाद में,
पर देश खातिर एक हो जाओ मैदान ए जंग में।