भारत की वेदना
भारत की वेदना
अब तुम्हें अपने ही असहनशील लगने लगे हैं , सारी दुनिया में ऐसा कोई ठिकाना या लोग तलाश करके दिखा दो ,जहाँ कोई तुम्हें बर्दाश्त कर सके . मैने अब तक अपने जीवन क्या -क्या नहीं बर्दाश्त किया , मुगलों की गुलामी, पुर्तगालों की गुलामी ,अंग्रेजों की गुलामी , और इन सब के भयंकर अत्याचार , नृशंस हत्याएं ,व्यभिचार ,अनाचार आदि ,और अब भी सह रहा हूँ, वही सब जो पहले सहा . फर्क बस इतना की वोह सब गैर थे ,और आज सब अपने हैं. चेहरे बदलें हैं बस ! मगर ज़ुल्म नहीं बदले. .में तो अब भी गुलाम हूँ, त्रस्त हूँ,दुखी हूँ, प्रताड़ित हूँ ”अपने” कहे जाने वाले लोगों से. . मैं तो रो रहा हूँ कई सदियों से, और अब भी . मेरे आसू सूखने का नाम ही नहीं लेते . और ” मेरे अपने ” मेरे आंसू सूखने भी नहीं देते . मेरा नित्य नए ज़ख्मों से वास्ता पड़ता है. और नित्य नए इलज़ाम मुझ पर लगते हैं. मगर अब यह नया इलज़ाम असहिष्णु होने का ,हाय !
यह तो घोर अत्याचार हो गया प्रभु !