भारत की बेटी
भारत की बेटी
सोचा था बंजर भी उपजाऊ होगी,
जगत जननी की नई परिभाषा होगी|
पहले तो बेटियों को जन्म के बाद मारने का अधिकार था,
न अब बेटियों का जन्म ही धिक्कार है|
सोचा था ममतामयी मूर्ति का सम्मान होगा,
माँ के सपनों का एक संसार होगा।
पहले तो सती होने भ्रम मे मुक्ति पा लेती थी बेटियां,
और अब देहज की आग मे विधवा हुऐ बिना विधवा बन जाती है बेटियां|
हे भारत के नवयुवको अपने भविष्य के राही को मत मिटने दो,
महिला जाग्रती का संकल्प ले ममतामयी भारत का निर्माण करो|
निर्माण करो नव भारत का जिसमें खुशहाली हो,
हर आँगन मे बेटी की किलकारी हो,
प्राचीन गया वर्तमान भी चला जायेगा,
हर घर मे बेटी को मारा गया तो प्रत्येक इंसान विधुर हो जाएगा|
आने दो बेटियों को धरती पर,
मत देना कोई आशीर्वाद उन्हे
वरना कौन देगा गालियाँ
माँ-बहन के नाम पर|
कहाँ गई हे मानुष तेरी लज्जा को रखने वाली,
कभी तो दुर्गा, कभी लक्ष्मी, कभी बन गई वह काली||
आने दो बेटियों को धरती पर,
मत देना दान-देहज उन्हे
वरना कैसे जलाई जाएगी बेटियां,
पराये लोगो के बीच|
चले हम वर्तमान कि ओर नया पथ देखने को,
देहज ने विवश कर दिया जहाँ बेटी को जिन्दा जलने को|
आने दो बेटियो को इस धरा पर ,
पनपने दो भ्रूण उनके,
वरना कौन धारण करेगा
तुम्हारे बेटो के भ्रूण अपनी कोख मे|
ये देहज के लोभी हत्यारे नित्य नया अपराध करें,
धन पराया समझकर बेटी का ही व्यापार करे|
आने दो बेटियों को धरती पर
मत बजाना थाली चाहे
वरना कौन बजायेगा थाँलिया काँसे की,
अपने भाई -भतीजो के जन्म पर।
बेटी ने ही बन दुर्गा असुरो का संहार किया,
लक्ष्मी ने राष्ट्र प्रेम की खातिर प्राणों को वार दिया
बन गई हर बाला भवानी अंग्रेजो के प्रतिकार को
लेकिन हे मानुष तुने अपना वैभव मान लिया है स्त्री पर अत्याचार को।
मैने अखबार का एक काँलम पढा,
भ्रूण मिले है कचरे मे,
एक नही दो -चार।
कभी सोचा हमने उन कलिकिंत होती कोखों बारे मे,
जिसका कारण है ये आदम मनु के वंशज
एक आदमी ही जिम्मेदार है इस बात के लिऐ हर संभव।
सो गया तुम्हारा हे मानुष ममता के प्रति अमर प्रेम,
जिसके आँचल मे छिपकर बचपन मे खेला था आँख मिचौली का खेल,
उसका ही प्रतिकार करे
निज स्वार्थ हेतु उसके देह का व्यापार करे’
उसके अंग-अंग की मादकता से नित्य नये खिलवाड़ करे
यौवन को ही तु समझे ना समझे पीर पराई को,
भीख माँगती ये माताऐ
कहती खाना दे दो भुखी हूँ माई को।
हे!मानुष जब तुने अपने को खोता पाया ,
तब नारी ने ही आकर तुझको धर्य बधाया।
हालत देख बेटी की मेरा दिल तो भर आया,
भूल गये हम उसका वैभव जिसके आँचल मे सुख पाया।
दामनी का दंभ तो देखो
संपूर्ण देश को जगा गई
हो गई नभ मे लीन वह परी-सी
कुलषित मानवता के आगे।
धरती रोयी अम्बर रोया ब्राहमांड मे हाहाकार उठा,
जगी जब भारत की नारी तो संपूर्ण जहान जाग उठा।
सुन ले ऐ भारत तेरी लाज माँ ने ही बचाई है,
राष्ट्र प्रेम की खातिर अपने बेटों की बलि चढाई ह
बोझा ढोती ये माताए अपनी निक्रष्ठ जवानी मे
जितना भी लाती ये पैसा हे आदम उसे तु ले जाता मयखाने मे।
क्या कभी तुने सोचा इसके लिऐ कुछ करने को
जो मरे बिना ही लाश बन गई जिंदा जलने को।
मानव हो कर मानवता की बात करे हम,
और कुछ ना कर सके तो नारी का सम्मान करे हम।
कोमल कलम कठोर वर्णन कर दिल बहुत रोया मेरा,
मात: सहोदरा वामा तुम को अर्पित यह गान मेरा।
वैभव का गुणगान करे हम शत्-शत् कोटि नमन करे हम,
हे भारत की माता तुम पर प्राण न्योछावर करे हम॥
{ समाप्त}
लेखक: राहुल आरेज{मीना