भारत की ज्योति
यह भारत की ज्योति इसे बिखरने दो
रवि,शशि,नभ इस धरा को
करें शत शत बार वंदन
जब था कल दुर्जनों का मेला
बिखरे प्रस्तर तिमिर यहाँ खेला
अब भारत की दिव्य ज्योत को
साज़िशों का मूल मिटाने दो
यह भारत की ज्योति इसे बिखरने दो
क्षण भर नीरवता जो छा गई
आशाओं की डगर खो गयी
जब तक लोटे उमंगो की किरण
तब तक ज्योति बिखरे हर पल
दुर क्षितिज तक छोर गगन तक इसे बिखरने दो
यह भारत की ज्योति इसे बिखरने दो
स्वर्ण सी यह धरा सुनहरी
हिमगिरी है जिसका प्रहरी
झर कर कुसुम बिखरे अपरिमित
सब कर रहे धरा को सुशोभित
सबकी आभा इसी ज्योति में निखरने दो
यह भारत की ज्योति इसे बिखरने दो