भारत की जमीं
वो हँस रहे इंसानियत पर , कहते है सारा जमाना है उनके साथ ,
गिला मत कर इंसान “ जग के मालिक का प्यार ” है तेरे साथ I
“जहाँ” में हँस-2 कर दिलों में जख्मों के घाव देते गए ,
अपना कहकर मन मंदिर में सुई का नश्तर चुभोते गए,
प्यार की फुलवारी में घ्रणा- नफरत का बीज बोते गए,
“ नागफनी जुबान ” से इंसानियत का क़त्ल करते गए I
वो हँस रहे इंसानियत पर , कहते है सारा जमाना उनके साथ ,
गिला मत कर इंसान “ जग के मालिक ” का ऐतबार तेरे साथ I
जिस जमीं की माटी को बड़े-2 संत-पीर भी है तरसते ,
छोटा-बड़ा का आवरण पहनकर हम आपस में झगड़ते ,
“मालिक के बेगुनाह बन्दों” का क़त्ल करके नाज़ करते,
माटी के पुतले उसकी खौफ भरी नज़रों से भी नहीं डरते I
वो हँस रहे इंसानियत पर , कहते है सारा जमाना उनके साथ ,
गिला मत कर इंसान “जग के मालिक” का तुझ पर है विश्वास I
“राज” पावन जमीं की माटी को सात जन्म तक न छोडूं ,
कबीर, तुलसी, खुसरों की जमीं से कभी भी नाता न तोडूं ,
मालिक के दरबार में खड़ें होकर उसके सामने हाथ जोड़ू ,
एक मौका इस जमीं पर और दे देना तभी अपने प्राण छोडूं I
वो हँस रहे इंसानियत पर , कहते है सारा जमाना उनके साथ ,
गिला मत कर नेक इंसान “जग के मालिक का प्यार” तेरे साथ I
देशराज “राज”