भारत और मीडिया
भारत एवं मीडिया –
भारत मे मीडिया विकास को मुख्यतः तीन चरणों मे बिभक्त किया जा सकता है
1- पन्द्रहवी सोलहवीं सदी में ईसाई मिशनरियों का धार्मिक साहित्य प्रकाशन करने के लिए प्रिटिंग प्रेस कि स्थापना ।
2-भारत का पहला अखबार बंगाल गजट 1780 में जेम्स आँगस्टन हिकी ने निकालना।
3-नब्बे के दशक में भूमंडलीकरण के आगमन के साथ तीसरे दौर कि शुरुआत हुई जो आद्यतन जारी है ।
प्रथम चरण –
राष्ट्र निर्माण और जन राजनीति के प्रचलित मुहावरों में हुए बुनियादी परिवर्तन का दौर था और जिसके बदौलत मीडिया के स्वरूप में आमूल चूल परिवर्तन परिलक्षित होते गए ।
उन्नीसवीं सदी के दूसरे दशक में कलकत्ता के पास श्रीरामपुर के मिशनरियों ने एव तीसरे दशक में राजा राम मोहन राय ने साप्ताहिक मासिक त्रैमासिक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ किया ।
पत्रकारिता कि दो दृष्टियों में टकराव से ही भारत मे मीडिया का आरम्भ है।
श्रीराम पुर कि मिशनरियां जहां भारतीय परम्परा पर प्रहार करते उंसे निम्न कोटि का दिखाने की प्रस्तुति करते वही राजा राममोहन राय द्वारा हिन्दू धर्म और समाज के आंतरिक आलोचक कि भूमिका में थे भारतीय परम्परा के उन परम्परा के आलोचक थे जो आधुनिकता से समन्वय नही करते ।
साथ ही साथ राजा राम मोहन राय परम्परा के उपयोगी ईसाई प्रेरणा को जोड़कर नए धार्मिक अवधारणा को स्थापित करने कि कोशिश करते रहे।
यह मीडिया का प्रारंभिक वह दौर था जो धार्मिक प्रश्नों और समाज सुधारक के आग्रहों से समबंधित विश्लेषण एव बहस का आधार था।
समाज सुधार के प्रश्न पर व्यक्त होने वाला मीडिया का द्वी ध्रुवीय चरित्र भविष्य में औपनिवेशिक बनाम राष्ट्रबाद के विरोधाभास में विकसित हो गया सन 1947 में सत्ता हस्तांतरण तक कायम रहा।
1930 के दशक तक ऐसे अंग्रेजी अखबारों कि संख्या अधिक थी जो अंग्रेजी शासन के पक्षधर थे इनका स्वामित्व अंग्रेजो के हाथ मे था ।
1861 में मुंबई में तीन अखबारों के विलय से टाइम्स ऑफ इंडिया कि स्थापना हुई जिसके माध्यम से ब्रिटिश हितों की सेवा करने के उद्देश्य से रॉबर्ट नाईट ने किया था।
1849 में गिरीश चंद्र घोष ने बंगाल रिकॉर्डर नाम से पहला अखबार निकाला जिसका स्वामित्व भारतीयों के हाथ मे था जिसका 1853 में नाम बदल कर हिन्दू पैट्रियट कर दिया गया हरिश्चंद्र मुखर्जी के ओजस्वी संपादन में प्रकाशित इस अखबार पर ब्रिटिश हुकूमत की आलोचनाओं का साया छाया रहा।
19 वी सदी के अंत तक उपनिवेशवाद विरोधी राष्ट्रीय नेतृत्व के आधार का सूत्रपात हुआ तो दूसरी तरफ देश कि स्वत्रंत्रता के समर्थक बहुत से पत्र पत्रिकाओं का बिभिन्न भाषाओं में प्रकाशन शुरू हुआ ।
भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता ब्रिटिश हुकूमत के लिए परेशानी एव उसके कोपभाजन का शिकार होती रही इसी से प्रभावित सन 1978 में अंग्रेजो ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लाकर अपनी आलोचना करने वालो का मुंह बंद करने की कोशिश किया जिसका भारत एव ब्रिटेन में विरोध हुआ ।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन हुआ जिसकी गतिविधियां नित्य मुखर होती गयी भारतीय भाषाओं के प्रेस ने भी इसी विचारधारा से समन्वय करते हुए अपने विकास के मार्ग को प्रशस्त किया ।
बीसवीं सदी में मीडिया जगत को विरासत कि एक मजबूत श्रृंखला मिली जिसमे तिलक, गोखले ,दादा भाई नौरोजी ,सुरेंद्र नाथ बनर्जी ,मदन मोहन मालवीय, रविन्द्र नाथ ठाकुर के नेतृत्व में पत्र पत्रिकाओं एव अखबारों का प्रकाशन हो रहा था बीस के दशक में महात्मा गांधी के दिशा निर्देशन में कांग्रेस जन आंदोलन बन गयी जिसमे महात्मा गांधी ने तीन तीन अखबारों का नेतृत्व किया।मीडिया के इस विकास क्रम का दूसरा भी ध्रुव था जिसमे राष्ट्रीय मुल्यों के महारथियों के नेतृत्व में मराठा ,केशरी,बेंगाली,हरीजन, नवजीवन,यंग इंडिया, अमृत बाजार पत्रिका हिंदुस्तानी, एडवोकेट, ट्रिब्यून,अखबार ए आम,साधना, प्रबसी,हिंदुस्तान रिव्यु अभ्युदय जैसे औपनिवेशिक विरोधी तर्कों एव स्वाधिनता के विचार से ओत प्रोत थे।
कलकत्ता का स्टेटमैन ,मुम्बई का टाइम्स ऑफ इंडिया ,मद्रास का मेल ,लाहौर का सिविल एंड मिलिट्री गजट इलाहाबाद का पायनियर खुले तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के पक्षधर थे मीडिया का विभाजन भाषायी आधार पर ही बढ़ता रहा ।
राष्ट्रीय भवनाओं के पक्षधर अंग्रेजी अखबारों की संख्या नगण्य थी अंग्रेजी भाषा के अखबार अंग्रेजी हुकूमत के पक्षधर ही थे ।
भारतीय भाषाओं के अखबारों ने मुखर होकर उपनिेशव के विरुद्ध आवाज बुलंद किया ।
इस दौर में अंग्रेजी अखबारों के लिए विज्ञापन एव संसाधनों में कोई कमी नही रहती जो हुकूमत के पक्षधर थे और उनके पत्रकारों के सुविधा वेतन बहुत अच्छे थे उपनिवेश विरोधी अखबारों के पूंजी आधार बहुत कमजोर ।अंग्रेजी पत्रकारिता के तत्कालीन महत्व को देखते हुये मालवीय ,मुहम्मद अली, ऐनी बेसेंट ,मोतीलाल नेहरू ने राष्ट्रवादी विचारधारा के अंग्रेजी अखबारों लीडर,कामरेड,मद्रास स्टैंडर्ड ,न्यूज़ ,इंडिपेंडेंस, सिंध आब्जर्वर की शुरुआत की ।1923 में कांग्रेस का समर्थन करने वाले घनश्याम दास बिड़ला ने द हिंदुस्तान टाइम्स का प्रकाशन शुरू किया 1938 में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजी राष्ट्रबादी अखबार नेशनल हेराल्ड कि स्थापना कि।
1826 में कलकत्ता के जुगल किशोर सुकुल ने उदंत मार्तण्ड नामक पहला हिंदी समाचार पत्र प्रकाशित किया ।
हिंदी मीडिया ने अपनी दावेदारी बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में प्रस्तुत किया जब गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप ,बालमुकुंद गुप्त और अंबिका शरण बाजपेयी ने भारत मित्र,महेश चंद अग्रवाल ने विश्वामित्र, और शिवप्रसाद गुप्त ने आज एवं पूर्ण चनद्रगुप्त ने दैनिक जागरण कि स्थापना की यही से हिंदी प्रेस मीडिया कि शुरुआत है।इसी दौर में उर्दू अब्दुल कलाम आजाद ने अल- हिलाल – अल बिलाग का प्रकाशन शुरू किया मुहम्मद अली ने हमदर्द ,लखनऊ से हकीकत लाहौर से प्रताप और मिलाप दिल्ली से तेज का प्रकाशन शुरू हुआ ।
बंग्ला से संध्या ,नायक ,बसुमती, हितबादी,नबशक्ति ,आंनद बाजार पत्रिका,जुगन्तर ,कृषक,और नवयुग के बिभन्न दृषिकोंण के साथ प्रकाशन शुरू हुए।
उपनिवेश वाद विरोध में भविदार मराठी में इंदुप्रकाश,नवकाल,नबशक्ति, लोकमान्य, गुजराती में गुजराती पंच ,सेवक,गुजराती और समाचार, वंदेमातरम, दक्षिण भारत से मलयाला मनोरमा,मातृभुमि, स्वराज्य,अल अमीन ,मलयाला राज्यम, देशभिमानी ,सयुक्त कर्नाटक,आंध्र पत्रिका,कल्कि,तन्ति, स्वदेशमित्रम ,देश भक्तम,एव दीना मणि भी उपनिवेशवाद के विरुद्ध अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे थे।
प्रश्न यह उतना स्वाभाविक है की इन मीडिया को किन मायनों में राष्ट्रवादी कहना उचित होगा ।इसमें संदेह की कोई गुंजाइश ही नही कि ये सभी पत्र पत्रिकाएं ब्रिटीश उपनिवेशवाद के विरोध में थी लेकिन उपनिवेश के विरुद्ध संघर्ष में विचारों में भिन्नताएं बहुत थी कांग्रेस एव अन्य राजनीतिक ध्रुवों के मध्य अंतर स्पष्ठ परिलक्षित थे।
1924 में ब्रिटिश हुकूमत ने शौकिया रेडियो क्लब कि अनुमति प्रदान किया तीन वर्ष बाद निजी क्षेत्र के ब्रॉडकास्ट कम्पनी ने कलकत्ता में नियमित प्रसारण कि शुरुआत कि साथ ही साथ शौकिया रेडियो भी चलता रहा अनुमान है कि शौकिया रेडियो के कारण ही अंग्रेजो को बायकायदा रेडियो कि स्थापना करनी पड़ी इसी तरह प्राइवेट केविल ऑपरेटरों के कारण सरकार को नव्वे के दशक में टेलीविजन का आंशिक निजीकरण करने की इजाज़त देनी पड़ी।
बरहाल औपनिवेशिक सरकार ने 1930 में ब्रॉडकास्टिंग को अपने हाथ मे ले लिया और 1936 में इसका नामकरण आल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी कर दिया गया ।हैदराबाद ,त्रावणकोर,मैसूर ,वडोदरा, त्रिवेंद्रम, औरंगाबाद रियासतो में रेडियो प्रसारण कि शुरुआत हुई ।
रेडियो पूरी तरह से अंग्रेजी सरकार के प्रचार तंत्र का अनिवार्य हिस्सा था सेंसरशिप ,सलाहकार बोर्ड,और विभागीय निगरानी जैसे संस्थागत नियंत्रक उपायों द्वारा ब्रिटिश हुकूमत ने यह सुनिश्चित किया उपनिवेश विरोध राजनीति के पक्ष में रेडियो से कोई प्रसारण सम्भव न हो ।
विशेष तथ्य यह है कि भारत कि आजादी के बाद भी यह परम्परा कायम रहीं अंग्रेजो के बाद समय समय पर भारत सरकार ने आकाशवाणी को अपना आवाज बनाये रखा 1997 में आकाशवाणी एक स्वायत्तशासी निकाय बन गई।
द्वितीय चरण-
भारतीय मीडिया कि पहचान का आधार ही उपनिवेशवाद विरोध एव पक्ष के द्विध्रुवीय अधार पर स्थापित थी जिसके कारण राजनीति उसकी स्वाभाविक केंद्रीय प्रबृत्ति बन गयी 15 अगस्त सन 1947 को सत्ता हस्तांतरण के बाद मीडिया में बुनियादी बदलाव परिलक्षित होने स्वाभाविक थे अंग्रेजो की पाबंदियां अप्रभावी हो गयी दूसरी तरफ अंग्रजी हुकुमत की पैरोकार अंग्रेजी अखबारों का नियंत्रण भारतीयों के नियंत्रण में आ गया महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि मीडिया राजनीतिक नेतृत्व से कंधा से कंधा मिलाकर आधुनिक भारत के निर्माण हेतु कार्य करना प्रारंभ कर दिया मीडिया के विकास का दूसरा चरण सन 19980 तक जारी रहा जिसके चार प्रमुख आयाम थे-
1-सुपरिभाषित राष्ट्र हित आधुनिक भारत के निर्माण में सचेत सतर्क भविदार।
2- ,अभव्यक्ति कि स्वतंत्रता में कटौती करने की सरकारी कोशिशों के विरुद्ध संघर्ष।
3-विविधता एव प्रसार कि जबरदस्त उपलब्धि के साथ साथ भाषायी पत्रकारिता द्वारा अपने महत्व एव श्रेष्ठता कि स्थापना।
4- प्रसारण मीडिया कि सरकारी नियंत्रण से एक सीमा तक मुक्ति।
भारत सरकार में सरकार को गिराने या बदनाम करने में प्रेस ने कोई रुचि नही दिखाई साथ ही साथ सत्ता का ताबेदार बनना भी स्वीकार नही किया ।
उसका व्यवहार रेडियो एव टी वी से विल्कुल अलग था आकाशवाणी पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में थी 1959 में शिक्षात्मक उद्देश्यों से शुरू हुए टेलीविजन दूरदर्शन के प्रोग्रामिंग कि जिम्मेदारी भी आकाशवाणी के ही पास थी ।
निजी क्षेत्र में शुरू हुए प्रेस ने सत्तारूढ़ एव बिपक्षी दलों एव अधिकारी तंत्र को बार बार स्व परिभाषित राष्ट्रहित की कसौटी पर परखा यही वास्तविकता उंसे व्यवस्था के अंग के रूप में आंतरिक आलोचक सतर्क एजेंसी कि भूमिका में ले गई ।
यह विश्वासः है कि आजादी के बाद सरकार को दिया गया प्रेस समर्थन एक सतर्क समर्थन ही था।
प्रेस ने राष्ट्र हित कि सर्वमान्य परिभाषा तैयार कि जिसकी स्वीकृति के लिए ना तो कोई सम्मेलन हुआ ना ही कोई दस्तावेज पारित किया गया ना ही इस सम्बंध में कोई मतभेद ही था उदयमान राष्ट्र राज्य जिस ढांचे पर खड़ा होगा उसका चरित्र लोकतांत्रिक एव सेकुलर होना चाहिये ऐसा मत था कि ऐसा करने के लिये उत्पीड़ित सांमजिक तबकों और समुदायों का लगातार सबलीकरण अनिवार्य है ।
प्रेस मालिक प्रबंधक एव पत्रकार अपने अपने ढंग से यह भी स्वीकार करते है इस लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए गरीबी को समाप्त करना पड़ेगा जिसका रास्ता वैकासिक एव मिश्रित अर्थ व्यवस्था ही हैं ।
स्वतंत्र भारत कि विदेश नीति गुटनिरपेक्ष अन्य देशों के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के प्रति मीडिया ने सकात्मक सहमति दर्ज कराई है ।
प्रेस द्वारा अपने कार्य विनियमित करने के लिए संस्थागत ढांचे का विकास करना शुरू किया गया1952 में एव 1977 में
दो प्रेस आयोग गठित किए 1965 में संवैधानिक प्रेस परिषद का गठन किया 1956 में रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट के तहत प्रेस प्रेस रजिस्टार ऑफ इंडिया कि स्थापना हुई इन उपायों को प्रेस कि आजादी को सिमिय करने के उपायों के संसय से देखा जा सकता था मगर भरतीय प्रेस ने सरकार के इन कदमो पर कभी आपत्ति नहीं किया क्योकि उंसे भरोसा था कि भारत सरकार किसी भी परिस्थितियों में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत मिलने वाली अभव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता कि गारंटी के मौलीक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ नही करेगी।
संविधान में स्प्ष्ट उल्लेख होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस गारन्टी में प्रेस कि स्वतनता को भी शामिल मान लिया लेकिन प्रेस का यह यकीन सन 1975 में तब धूल धुसित हो गया जब तत्कालीन प्राधन मंत्री द्वारा अपने राजनीतिक संकट से उबरने के लिये आपातकाल लागू किया गया प्रेस पर पाबंदियां लगा दी गयी 253 पत्रकारों को नजर बन्द कर दिया गया सात विदेशी संवादाताओं को निष्कासित कर दिया गया सेंसरशिप लागू किया गया एव प्रेस परिषद भंग कर दी गयी भारतीय प्रेस द्वारा इस आक्रमण का विरोध बहुत सीमित हुआ और कुछ ने सरकार के सामने घुटने टेक दिए कुछ ने हानि उठाकर भी आपात काल की पाबंदियों का विरोध किया ।
उन्नीस महीने बाद लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष आपातकाल पराजित हो गया लेकिन इस हादसे से पहली बार भारतीय प्रेस को संघर्ष कि आवश्यकता महसूस करनी विवसता हो गयी ।राष्ट्र निर्माण में हिस्सेदारी कि भूमिका पहले से अधिक सतर्क हो गयी पत्रकारों ने देखा कि आपातकाल कि पराजय के बाद भी राजनैतिक एव सत्ता प्रतिष्ठान में प्रेस कि स्वतंत्रता में कटौती करने की प्रबृत्ति समाप्त नही हुई है अस्सी के दशक में अभव्यक्ति की स्वतंत्रता कि रक्षा के संघर्षो का दशक बना 1982 में बिहार प्रेस विधेयक एव 1988 में लोक सभा द्वारा पारित मानहानि विधेयक को राज्यसत्ता पत्रकारों के द्वारा किये गए आंदोलन के कारण कानून में नही बदल पाए सरकार द्वारा एक्सप्रेस समाचार समूह को प्रताड़ित किये जाने से स्प्ष्ट हो गया कि किसी भी अखबार के विरोध को दबाने के लिये कानून बदलने के अपेक्षा सत्ता का दुरुपयोग बेहतर विकल्प है ।
आपात काल के विरुद्ध लोक प्रिय संघर्ष के कारण राजनीतिकरण कि प्रक्रिया पहले के अपेक्षा तेज हो गयी लोकतंत्र एव उसकी अनिवार्यता के प्रति नई जागरूकता ने अखबारों कि तरफ नए पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया नए पाठक बढ़ती साक्षरता कि देन थे बढ़ते प्रसार संख्या के कारण प्रिंट मीडिया का दृषिकोंण व्यवसायिक एव बाजारोन्मुखी होने लगा।
राजनीतिकरण साक्षरता पेशेवराना दृष्टिकोण दुखद संयोग के रूप में नई प्रिंटिंग जुड़ गई डेक्स टाप पब्लिसिंग सिस्टम कम्प्यूटर आधारित डिज़ानिग अखबारों पत्रिकाओं के प्रस्तुकरण में नए आकर्षण पैदा किये जिससे विज्ञापनों से आय में बृद्धि हुई ।
अस्सी के दशक में महत्त्वपूर्ण था भाषायी पत्रकारिता का विकास हिंदी, पंजाबी, मराठी, गुजराती ,बांग्ला, असमिया और दक्षिण भारतीय भाषाओं अखबारों को नई परिस्थिति का बेहतर लाभ हुआ ।
अस्सी दशक क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकारिता के उदय का दशक था इसके बाद भारतीय भाषयी पत्रकारिता ने के कभी पीछे मुड़ कर नही देखा ।
नई सदी में रष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण के अनुसार अंग्रेजी प्रेस के हाथों मीडिया कि लगाम नही रही अंग्रेजी का एक ही पत्र रह गया वह भी नीचे से दूसरे स्थान पर।
अस्सी के दशक में प्रसारण मीडिया के लिये एक सीमा तक सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने की परिस्थितियों का निर्माण हुआ 1948 में संविधान सभा मे पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने वचन दिया कि ब्रॉडकास्टिंग का ढांचा ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन के तर्ज पर होगा ।
यह आश्वासन पूरा करने में स्वत्रंत्रता के बाद भारत को 42 वर्षो का सफर तय करना पड़ा कारण रेडियो और टीवी का प्रयोग राजनीतिक समाजिक परिवर्तन के लिए सरकार निर्दर्शित नीति ही मुख्य कारण थी।
इस नीति के प्रभाव से रेडियो का माध्यम के रूप में कुछ विकास हुआ लेकिन टी वी का नही ।1975 -1976 में भारतीय स्पेस अनुसंधान संगठन इसरो ने अमेरिका से एक उपग्रह उधार लिया जिससे कि देश के बिभन्न हिस्सों के 2400 गांवों में कार्यक्रम का प्रसारण संम्भवः हो सके ।
जिसे सेटेलाइट इंस्ट्रक्शन टेलीविजन एक्सपेरिमेंट साइट कहा गया इसकी सफलता से बिभन्न भाषाओं में टी वी कार्यक्रमो का निर्माण एव प्रसारण कि संभावनाएं खुली ।
1982 में दिल्ली एशियाड का प्रसारण हुआ जिसकी जबजस्त सफलता से विभिन्न भाषाओं में टी वी प्रसारण कि सम्भावनाओं के द्वार खुले ।
1990 तक ट्रांसमीटरों कि संख्या 519 एव 1997 तक 900 हो गयी बी बी सी जैसे स्वायत्त कारपोरेशन बनाने के संदर्भ में 1966 तक केवल ए के चंद्रा के नेतृत्व में बनी कमेटी ने आकाशवाणी एव दूरदर्शन को स्वायत्त निगमो के रूप में गठित करने कि सिफारिश की थी 1978 में बी जी वर्गीज कि अध्यक्षता में गठित कार्य दल ने आकाश भारती नामक संस्था गठन करने का सुझाव दिया 1979 में प्रसार भारती नामक कारपोरेशन बनाने का विधेयक संसद में लाया गया जिसके अंतर्गत दूरदर्शन एव आकाशवाणी को काम करना था सरकार के गिर जाने के कारण विधेयक पारित नही हो सका।1985 से 1998 के मध्य दूरदर्शन को आजादी का झोंका नसीब हुआ जिसका श्रेय भाष्कर घोष को जाता है जो तत्कालीन दूरदर्शन महानिदेशक थे ।
प्रसार भारती विधेयक को राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने पारित किया तकनीकी रुप से दूरदर्शन एव आकाशवाणी स्वायत्त है वास्तविकता में सूचना एव प्रसारण मंत्रालय का अतिरिक्त सचिव ही इसके कार्यकारी अधिकारी होते है।
नब्बे के दशक में भरतीय मीडिया को बदलती दुनिया से पाला पड़ा भारत मे 1990 से 1991 के मध्य तीन महत्वपूर्ण घटनाएं महत्वपूर्ण थी –
1-मण्डल आयोग की सिफारिशों से निकला नई भारतीय राजनीति।
2-मंदिर आंदोलन कि राजनीति। 3-भूमंडलीकरण के अंतर्गत आर्थिक सुधार ।
इन तीनो ने मिलकर वामोन्मुख आकर्षक को नेपथ्य में धकेल दिया दक्षिण पंथी प्रभवी होकर मंचासीन हो गये इसी दौर में सरकार ने प्रसारण के लिए खुले आकाश कि नीति अपनानी शुरू कर दी ।
तृतीय चरण –
1990 के दशक में आकाशवाणी एव दूर दर्शन को एक हद तक स्वायत्तता दी बल्कि स्वदेशी निजी पूंजी एव विदेशी पूंजी को प्रसारण क्षेत्र में आमंत्रित एव आकर्षित किया जिसके लिये कुछ समय अवश्य लगा जो इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में पूरा हुआ ।
मीडिया सिंगल सेक्टर सिर्फ मुद्रण प्रधान नही रह गया उपभोक्ता क्रांति के कारण आय में कई गुना बढ़ोतरी हुई जिसने मीडिया के बिभन्न आयामो के विस्तार का अवसर उपलब्ध कराया क्योकि पूंजी की कमी समाप्त हो चुकी थी सेटेलाइट टी वी से पहले केबल टीवी के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचा जो प्रौद्योगिकी एव उद्यमशीलता कि दृष्टि से स्थानीय पहल कदमी और प्रतिभा का असाधारण नमूना था। इसके बाद आई डी टी एच प्रद्योगिकी जिसने समाचार प्रसारण एव मनोरंजन कि दुनियां को पूरी तरह बदल दिया एफ एम रेडियो चैनल्स कि कामयाबी से रेडियो का माध्यम मोटर वाहनों से आक्रांत नागर संस्कृति का एक पर्याय बन गया ।
1995 में भारत मे इंटरनेट के युग का शुभारंभ हुआ जो इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के अंत तक बड़ी संख्या में लोंगो के निजी एव व्यवसायिक जीवन का एक अहम हिस्सा नेट के जरिये संचालित होने लगा नई मीडिया प्रौद्योगिकी ने अपने उपभोक्ताओं को कन्वर्जेन्स का उपहार दिया जो जादू कि डिबिया की तरह हाथों में थमे मोबाइल फोन के जरिये उन तक पहुँचने लगा इन सभी महत्वपूर्ण आयामो ने मिलकर मीडिया को विराट एव विविध बना दिया जिसके आगोश में सार्वजनिक जीवन के अधिकतर आयाम सम्मिलित हो गए इसे ही मीडिया स्फेयर पहचान का नाम दिया गया।
प्रिंट मीडिया में विदेशी पूंजी को अवसर मिलने का पहला असर रियुतर और बी बी सी जैसे विदेशी मीडिया संगठन भारतीय मीडिया स्पेयर कि तरफ आकर्षित होने लगे ।
भारत मे श्रम बहुत सस्ता अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुकाबले यहां एक चौथाई ही खर्च आता अतः ग्लोबल संस्थाओं ने भारत को अपने मीडिया प्रोजेक्टों के लिये आउट सोर्सिंग का केंद्र बनाया भारतीय बाज़ार में मौजूद मीडिया के विशाल असाधारण टैलेंट का ग्लोबल बाज़ार के लिए दोहन होने लगा ।
भारत की पत्र पत्रिकाएं प्रमुख मीडिया कम्पनियां (टाइम्स ग्रुप ,आनंद बाज़ार पत्रिका ,जागरण, भास्कर ,हिंदुस्तान टाइम्स ) वाल स्ट्रीट जनरल,फनेसियल टाइम, बी बी सी ,इंडिपेंडेंट न्यूज़ एंड मीडिया और ऑस्ट्रेलियाई प्रकाशनों के साथ साथ सहयोग समझौते करने लगें।
घराना संचालित कम्पनियों पर आधारित मीडिया बिजनेस ने पूंजी बाजार में जाकर आपने अपने इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आई पी ओ प्रस्ताव जारी किए जिनकी प्रथम शुरुआत एन डी टी वी,टी वी टुडे ,जी टेलीफिल्म्स ,ने किया।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तर्ज पर प्रिंट मीडिया ने भी पूंजी बाजार में छलांग लगाई और अपने विस्तार के निवेश हासिल करने में जुट गए जिसके लिए पहला प्रयास डेकन क्रॉनिकल ने किया जिसकी सफलता ने प्रिंट मीडिया के पूंजी संकट का समाधान बनकर उभरी।
बाजारबाद के बढ़ते प्रभाव एव उपभोक्ता क्रांति में छाए उछाल के परिणाम स्वरूप विज्ञापन स्वंय एक उपयोगी श्रोत के रूप में प्रसंगिक होने लगा 1940 के दशक में विज्ञपन एजेंसियों कि संख्या 14 से 20 थी जो 1979-80 न्यूज़ पेपर सोसाइटी आई एन एस की मान्यता प्राप्त एजेंसियों कि संख्या 168 हो गई जो भूमंडलीकरण प्रक्रिया के बाद दो दशकों में 750 कर दी गयी जो 400 करोड़ वार्षिक कारोबार कर रही थी इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है उपभोक्ता क्रांति कितना प्रभवी रहा विज्ञपन कि रंगीन एव मोहक हवाओ पर सवार होकर दूर दूर तक फैलते उपभोग के संदेशों ने उच्च वर्ग उच्च मध्यम वर्ग ,समूचे मध्य वर्ग, और मजदूर वर्ग के खुशहाल होते हुये महत्वाकांक्षी हिस्सो को अपनी बाहों में समेट लिया मीडिया का विस्तार विज्ञापनों में हुई जबजस्त बढ़ोत्तरी के बिना सम्भव नही था।
प्रिंट मीडिया एव रेडियो मीडिया विज्ञपनों को बहुत प्रभवी एव असरदार नही बना सकता जितना टी वी ने बनाया है टी वी का प्रसार भारत मे कुछ बिलम्ब से अवश्य हुआ लेकिन शुरुआत के बाद मीडिया कि दुनिया मे पहले से स्थापित मुद्रित माध्यम को बहुत शीघ्र असूरक्षाग्रस्त कर दिया इस प्रक्रिया में केबिल डी टी एच का योगदान उल्लेखनीय है केबिल टी बी के प्रसार और सफलता भरतीय उद्यमी प्रतिभा का उदाहरण था ।
सरकार के पास सुसंगत सांचार नीति का अभाव था नब्बे दशक कि शुआआत में बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले मध्यम वर्ग एव निम्न वर्ग मध्यमवर्गीय आबादियों में कुछ उत्साही होशियार लोंगो ने अपने नीजी प्रयासों से क्लोज सर्किट टेलीविजन प्रसारण का प्रबंध किया जिसका केंद्र एक सेंट्रल कंट्रोल रूम हुआ करता था जिसके माध्यम से वीडियो प्लेयरो के जरिये फिल्मों को दिखना शुरू किया साथ ही साथ दर्शकों को मनोरंजन कि चौबीस घण्टे चलने वाली खुराक देने लगे 1992 में केबिल नेटवर्क के 41 लाख उपभोक्ता थे जो 1996 में 92 लाख हो गयी 1997 तक पूरे देश मे टी वी वाले 31 प्रतिशत घरों में केबिल प्रसारण देखा जा रहा था ।
सदी के अंत तक बड़े आकार के गांवों और कस्बो टी वी दर्शकों तक केबिल की पहुंच हो चुकी थी केबिल और उपग्रही टी वी चैनलो कि लोकप्रियता देखकर प्रमुख मीडिया कम्पनियों ने टी वी कार्यक्रम के व्यवसाय में कदम रखे पब्लिक एव प्राइवेट टी वी चैनलों को कार्यक्रमो की आपूर्ति करने लगे।
केबिल एव डी टी एच के कदम तभी जम सकते थे जब पहले सरकारी और प्राइवेट टेलीविजन प्रसारण में बृद्धि हुई 1982 में दिल्ली एशियाड के द्वारा रंगीन टी वी के कदम पडते ही भारत मे टी वी ट्रांसमीटरों कि संख्या तेजी से बढ़ी पब्लिक टी वी के प्रसारण नेटवर्क दूरदर्शन ने नौ सौ ट्रांसमीटरों तीन बिभन्न सेटेलाइट कि सहायता से देश के 70 प्रतिशत भौगोलिक 87 प्रतिशत आबादी को अपने दायरे में ले लिया पंद्रह साल में दो सौ तीस प्रतिशत कि वृद्धि हुई मुख्य चैनल डीडी वन तीस करोड़ लोंगो यानी कितने देशों कि कुल आबादी से अधिक पहुंच का दावा करने लगा प्राइवेट टी वी प्रसारण केविल और डी टी एच के द्वारा अपनी पहुंच लगातार बढ़ता जा रहा है ।लगभग सभी ग्लोबल टी वी नेटवर्क अपने बल पर स्थानीय पार्टनरों के साथ अपने प्रसारण का विस्तार निरंतर करते जा रहे है भारतीय चैनलों द्वारा दिन रात उनसे प्रतिस्पर्धा कर रहे है।
अंग्रेजी एव हिंदी चैनलों के साथ साथ क्षेत्रीय भाषाओं विशेष कर दक्षिण भारतीय के मनोरंजन एव न्यूज़ चैनल कि लोकप्रियता और व्यवसायिक कामयाबी भी उल्लेखनीय है सरकार कि दूर सांचार नीति इन मीडिया कम्पनियों को इज़ाज़त देती है कि वे सेटेलाइट के साथ सीधी अपलिंकिंग करके कार्यक्रमो का प्रसारण कर सकते है इन्हें विदेश संचार निगम के रास्ते आने की विवशता नही है।
अगस्त 1995 से नवम्बर 1998 के मध्य सरकारी संस्था विदेश सांचार निगम लिमिटेड द्वारा इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराई जाती यह संस्था कलकत्ता ,मुम्बई, मद्रास,दिल्ली स्थित चार इंटरनेशनल टेली कामुनिकेशन गेटवेज के माध्यम से काम करती थी नेशनल इंफोमेटिक सेन्टर एन आई सीनेट एव एजुकेशन एव रिसर्च नेटवर्क ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक ई आर एनयटी विशेष प्रकार के क्लोज यूजर ग्रुप को सेवाएं प्रदान करते है ।दिसम्बर 1998 में दूर संचार विभाग ने बीस प्राइवेट ऑपरेटरों को आईएसपी लाइसेंस प्रदान करके इस क्षेत्र का निजीकरण कर दिया 1999 तक सरकार के अंतर्गत चलने वाले महानगर टेलीकॉम निगम सहित 116 आई एस पी कम्पनियां सक्रिय हो चूंकि थी केबिल सर्विस देने वाले भी इंटरनेट उपलब्ध करा रहे थे।
जैसे जैसे बी एस एन एल ने अपना शुल्क घटाया इंटरनेट सेवाएं सस्ती होती चली गयी देश भर में इंटरनेट कैफे खुल गए 1999 तक भारत मे 114062 इंटरनेट होस्ट पहचानने जा चुके थे इनकी संख्या में 94 प्रतिशत कि दर से बढोत्तरी हुई ।
नई सदी में कदम रखते ही सारे देश मे कम्प्यूटर बूम कि आहट सुनाई देने लगी पेर्सन्सल कंप्यूटर की संख्या में तेजी से बृद्धि होने लगी साथ ही साथ इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने लगी ई कामर्स कि भूमिका तैयार होने लगी बैंकों ने उसे प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया देश के प्रमुख अखबार संस्करण आन मिलो प्रकाशित होने लगे विज्ञपन एजेंसियां अपने उत्पादन नेट पर बेचने लगी नेट ने व्यक्तिगत जीवन कि गुणवत्ता में नए आयाम का शुभारम्भ किया ।
भारत के प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित
(अ)
हिंदी दैनिक समाचार पत्र –
1-दैनिक जागरण 2- दैनिक भास्कर 3-राजस्थान पत्रिका 4-अमर उजाला 5- पत्रिक 6-प्रभात खबर 7-नवभारतटाइम्स 8-हरिभूमि 9- पंजाब केशरी 10- गोंडवाना समय 11-नई दुनियां 12-भारत मीडिया 13- हिंदुस्तान
अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र –
(ब)
1-टाइम्स ऑफ इंडिया 2-हिंदुस्तान टाइम्स 3-हिन्दू4- मुंबई मिरर 5-तार 6-नवभारतटाइम्स 7-मिड डे 8- द ट्रिब्यून 9-डेक्कन हेराल्ड 10-डेक्कन क्रॉनिकल 11-गोंडवाना टाइम्स 12-पायनियर
क्षेत्रीय दैनिक समाचार पत्र –
(स)
1-मलाला मनोरमा( मलयालम )2- डेली थन्थी (तमिल)3 मातृभूमि (मलयालम )4 लोकमत (मराठी) 5- गोंडवाना समय (गोंडी )6- एनाडू (तेलगु )7- गुजरात का समाचार (गुजराती )8- सकाल (मराठी )9 -सदेस (गुजराती )10- साक्षी (मराठी) 11 -गुजरात का समाचार ( गुजराती) 12- दैनिक समाचार मीडिया हिंदी
पत्रिकाएं
(क)
1- प्रतियोगिता दर्पण 2- इंडिया टूडे 3-सरस सलिल 4- समय ज्ञान दर्पण 5 गृह शोभा 6- समय ज्ञान दर्पण 7- जागरण जोश प्लस 8- क्रिकेट सम्राट 9-आदिवासी एव आदिवासी विजन 10- जनसत्ता 11- हीरा क्रिकेट आज 12- मेरी सहेली 13- सरिता 14- समृद्ध झारखंड 15 – गोंडवाना नवयुग हिंदी
(ख)
अंग्रेजी
1-इंडिया टूडे 2- प्रतियोगिता दर्पण 3-सामान्य ज्ञान आज 4-स्पोर्टस्टार 5- प्रतियोगिता सफलता कि समीक्षा 6- आउट लुक 7- रीडर डाइजेस्ट 8- फ़िल्म फेयर 9- हीरा क्रिकेट आज 10- फेमिना
(ग)
क्षेत्रीय पत्रिकाएं-
1-वनिता (मलयालम )2- मथुरभूमि आरोग्य मास्का (मलयालम) 3- मनोरमा ठोजलिवेदी (मलयालम)4-, कुमुद (तमिल )5-कर्म संगठन बंगाली 6- मनोरमा थोजिवार्थ (मलयालम) 7-गृहलक्ष्मी (मलयालम )8- मलयालम मनोरमा (मलयालम )9- कुंगुमम (तमिल) 10- कर्मक्षेत्र बंगाली 11 – गोंडवाना नवयुग (गोंडी) 12-लोक संवेदना दस्तक एव आदिवासी विजन!!
सोसल मीडिया –
नए वैज्ञानिक युग मे मीडिया के मूल स्वरूप प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा सोसल मीडिया ने अहम स्थान बना लिया है ।
सोसल मीडिया का तातपर्य है आपसी सम्बन्धो का अंतरजाल या अन्य माध्यमो द्वारा निर्मित आभासी समूहों से है यह व्यक्तियों के समूह को सहभागी बनाते है स्प्ष्ट है इंटरनेट का प्रयोग करते हुए अपने चहेतों से जुड़ना ।सोसल मीडिया का उपयोग द्रुत गति से सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए होता है जिसमे प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित खबरे जानकारियां रहती है ।
यह एक आभासी दुनिया का निर्माण करती है जिसमें इंटरनेट ही माध्यम है सोसल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है सोसल मीडिया कि सकारात्मक भूमिका के कारण शिक्षा, स्वास्थ ,कृषि, तकनीकी ,व्यवसायिक हर क्षेत्रो मे क्रांति आयी है साथ ही साथ सांमजिक धार्मिक मुल्यों को समझने में आम जन सक्षम हुआ है ।
सोसल मीडिया मुद्दों एव विषयो पर जन जागृति करता है सोसल मीडिया का प्रयोग समाज का प्रत्येक वर्ग कर रहा है ।
सोसल मीडिया के माध्यम से जानकारियों को साझा करना एक दूसरे के अनुभव संस्कृतियो से जुड़ने का सशक्त माध्यम है।
सोसल मीडिया के लाभ है तो हानि भी हैं यह फिजिकल हेल्थ पर प्रभाव डालता है एव बहुत से भ्रामक तथ्यहीन सूचनाओं का भी प्रचार प्रसार होता है जो पंथ सम्प्रदाय समाज मे द्वेष घृणा को जन्म देते है तो बच्चों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ।सोसल मीडिया जानकारी बढ़ाने में सक्षम होते हुए समाज को जागरूक एव चैतन्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है तो नययुवको एवं किशोर बच्चों के बहुत बड़े हिस्से पर इसके अधिक कुप्रभाव ही दिख रहे है अश्लीलता एव जघन्यता का भी नया नया प्रयोग सोसल मीडिया पर हो रहा है।
सोसल मीडिया को सांमजिक मसर्यादा एव संवेदनशीलता के साथ उपयोग समाज के विकास के लिये अनिवार्यता है उन्मुक्त अमर्यादित प्रयोग हानिकारक।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।