भारतीय संस्कृति का चमकता हीरा है संत कबीर – आनंदश्री
भारतीय संस्कृति का चमकता हीरा है संत कबीर – आनंदश्री
महान संत कबीर के विचार प्रखर ज्योति की तरह आज भी जगमगा रहे है। इस बार गुरुवार, 24 जून 2021 को कबीरदास जयंती मनाई जाएगी।
मन की बात में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कबीर के ही दोहे से शुरुवात की थी कि
पक्की खेती देखि के, गरब किया किसान,
अजहूं झोला बहुत है, घर आवे तब जान।
अर्थात कई बार हम पकी हुई फसल देखकर ही अति आत्मविश्वास से भर जाते हैं कि अब तो काम हो गया लेकिन जब तक फसल घर न आ जाए तब तक काम पूरा नहीं मानना चाहिए। कोरोना काल मे भी थोड़े आंकड़े कम होने के बाद लोग ढीले ही जाते है। और सोचते है कि अब कोई खतरा नही है ।
कबीर जी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है।
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महान कवि एवं संत कबीर की जयंती मनाई जाती है। यह माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था।
वैज्ञानिक, फिलॉसॉफर, आत्मसाक्षात्कारी थे संत कबीर।
मध्यकाल जो कबीर की चेतना का प्राकट्यकाल है, पूरी तरह सभी प्रकार की संकीर्णताओं से आक्रांत था। धर्म के स्वच्छ और निर्मल आकाश में ढोंग-पाखंड, हिंसा तथा अधर्म व अन्याय के बादल छाए हुए थे। उसी काल में अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर कबीर रूपी दहकते सूर्य का प्राकट्य भारतीय क्षितिज में हुआ।
कबीर बीच बाजार और चौराहे के संत हैं।
एक ऐसे दिन जब मन पहले से ही व्यवहार दक्षताओं, नेतृत्व व्यवहारों और लोगों के विकास के आसपास के विभिन्न शब्दजाल के बारे में विचारों से भरा हुआ था, कबीर के दोहे ने अपनी सादगी के साथ मन को प्रभावित किया।
इस कथित रूप से पूरी तरह से कोई फॉर्मल शिक्षा न लिए हुए संत की बातें न केवल आज के कोरोना भरी दुनिया में सामाजिक और आध्यात्मिक प्रासंगिकता रखती हैं, कबीर संगठनात्मक व्यवहार और नेतृत्व विकास का प्रतिक है।
कई दोहे कुछ सार्वभौमिक रूप से प्रासंगिक व्यवहारों से गहराई से जुड़े हुए हैं जो कि अधिकांश योग्यता शब्दकोशों में पाए जाते हैं।
” बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अतिदूर”
आप बड़े है तो क्या हुआ ! यदि आप बड़े हैं (खजूर के पेड़ का जिक्र करते हुए), न तो थके हुए यात्री को छाया प्रदान करते हैं और न ही आपके फल पहुंच के भीतर हैं। तो क्या फायदा।
एक नेता के रूप में स्थिति और शक्ति एक महत्व और प्रभाव दे सकती है, लेकिन यह टीम के लिए बहुत कम परिणाम है यदि नेता पहुंच योग्य नहीं है और टीम के लिए वास्तव में वहां नहीं है जब उन्हें उसकी आवश्यकता होती है। “नेतृत्व स्थिति नहीं कार्रवाई के बारे में है” । वैसे आज मैनेजमेंट ने स्वीकारा है कि लीडरशिप कोई टाइटल नही है।
धीरे धीरे रे मन, धीरे सब कुछ होये
माली सेन्चे सो घर, रितु आए फल होये
धीमा करें और अधीर न हों, चीजें अपने समय में होंगी। जैसे फल सही मौसम में ही आता है, माली पौधों को कितना भी पानी क्यों न दे दे। युवा आबादी के विशेष संदर्भ में, सीखना और बढ़ना महत्वपूर्ण है; एक संगठनात्मक ढांचे में कुछ कौशल और क्षमताओं को विकसित होने में समय लगेगा।
दूसरे नजरिये से देखा जाए तो यह हमारे लोगों से हमारी अपेक्षाओं के बारे में भी बता रहा है और उन्हें कैसे संयमित किया जाना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि हम पद, जिम्मेदारी और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, प्रबंधक जल्दी से नेता नहीं बनेंगे। स्थिति संभावित नहीं है और इसमें समय लगेगा। “लोगों के विकास में समय लगता है”। धीरज रखे, और अपना काम करे।
ऐसी वाणी बोलिये, मुन का आप खोये
अपना तन शीतल करे, औरं को सुख होये
आइए हम इस तरह से बात करें कि आप अहंकार खो दें और दूसरों को वाणी में शांति और अर्थ मिल सके। ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जिससे आपका अहंकार समाप्त हो जाए और इसे अपने बारे में न बनाएं।
संचार प्रभाव के बारे में है और प्रभाव दूसरे व्यक्ति को संचार के केंद्र में रखने से आता है, जिसके लिए हमें किसी स्तर पर इसे अपने बारे में कम करने की आवश्यकता होती है (अहंकार छोड़ें) और इस पर काम करें कि हम क्या पाने के लिए चीजों को कहते हैं। हम चाहते हैं। “यह इस बारे में नहीं है कि हम क्या कहते हैं बल्कि हम इसे कैसे कहते हैं”
मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
चीजों के लिए भीख माँगना मरने जैसा है (अंदर), किसी को भीख न माँगने दें क्योंकि भीख माँगने से मरना बेहतर है। निहित संदेश यह है कि किसी को यह पूछने की तुलना में प्राप्त करना बेहतर लगता है कि उनका क्या है और उन्हें छोटा महसूस कराना है।
अपने स्वयं के संगठन में पुरस्कार और मान्यता की संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाली योग्यता है। क्या यह वह है जो आसन और राजनीति को प्रोत्साहित करता है या यह वह है जहां उन्हें लगता है कि उनके प्रयास को काफी पुरस्कृत किया गया है?
जब कोई ‘प्राप्त’ करता है या मान्यता प्राप्त महसूस करता है, तो वे अपने प्रयास पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। जब किसी को पूछना या मांगना होता है, तो यह दर्शाता है कि व्यवस्था असंगत है और अच्छे लोग चले जाएंगे।
“मान्यता हमेशा सिर्फ इनाम से ज्यादा काम करती है।”
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर
ना कहू से दोस्ती, ना कहू से बैर
कबीर बाजार में खड़ा है और सभी के लिए केवल समृद्धि मांगता है। न तो वह विशेष मित्रता चाहता है और न ही किसी से शत्रुता चाहता है।
एक अच्छा नेता विश्वास का माहौल बनाता है जब वे कार्यस्थल पर कोई पूर्वकल्पित धारणा या रूढ़िवादिता नहीं लाते हैं। एक नेता जो मानता है कि उसकी मुख्य जिम्मेदारी अपनी टीम को सफल होने में सक्षम बनाना है, बड़ी चीजों के लिए किस्मत में है।
रिश्तों का महत्व दे। मानवता प्रेम ही असली प्रेम है।
“पोथी पढ़ पढ़ कर जग मुआ, पंडित भयो ना कोय”
ढाई आखर प्रेम के, जो पढ़े सो पंडित होय”
कई किताबों और शास्त्रों के अपने ज्ञान के माध्यम से अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की कोशिश में मारे गए हैं। जो कोई भी प्रेम के शब्दों के कुछ शब्दों को जानता है और उनका उपयोग करता है, वे ज्ञानी (पंडित) बन जाते हैं।
निश्चित रूप से, एक नेता का सम्मान उसके ज्ञान और अनुभव से आता है, लेकिन सच्ची संगति टीम के लिए वहां रहने से आती है और टीम लीडर के लिए आत्मीयता की भावना महसूस करती है। इसके लिए बस इतना ही जरूरी है कि वह लौकिक पद से हटकर टीम के प्रति सच्चा स्नेह प्रदर्शित करे।
नेतृत्व इस बारे में है कि आप क्या करते हैं, न कि आप जो जानते हैं।
अपने मन को निर्मल बना कर रखे।
कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर , पाछै लागै हरि फिरै ,कहत कबीर कबीर।
ऐसे लोग जिनका मन निर्मल हो गया है जो आठों पहर घड़ी पल छिन सिमरन में मगन हैं ,जिनके मुख का मन ,जिनके मुख का ध्यान वाहेगुरु की तरफ है ,ईश्वर उनकी परवाह हर घड़ी करता है।
इनका अंत :करण कामक्रोध ,मोह ,ममता से मुक्त रहता है ,धर्म अंदर की साधना है बाहरी कर्मकांड ,तन का पैरहन नहीं है ,इनके बाहर के भी सभी काम पूरे ही होते हैं अंदर के तो सब सधते ही हैं।क्योंकि इनका मन साधना से सिमरन से निर्मल हो गया है।
गृहस्थश्रम में रहकर उन्होंने परमात्मा को पाया। अपनी साधना की। ईमानदारी से समाज पर बोझ न बनते हुए गृहस्थी सम्भालते हुए जुलाहा का कार्य किया। जंहा जो लगे वह सिखावनिया दी।
कोरोना के काल मे कबीर के दोहे, ज्ञान जीवन को नया आयाम देते है। उन्हें इस कोरोना काल मे पढ़े, समझे और जीने का प्रयास करें।
प्रो. डॉ दिनेश गुप्ता- आनंदश्री
आध्यात्मिक व्याख्याता एवं माइन्डसेट गुरु
मुम्बई