भारतीय लोकतंत्र प्रथम
कुछ तो है मेरे देश समाज में,
जो इतने हैं खफ़ा खफ़ा,
सबकुछ एक है जैसा,
फिर भी सबकुछ जुदा जुदा.
गर अतीत में है जहर ,
क्या मिटाना असंभव है,
गर अतीत है स्वर्णिम
तो वर्तमान में क्यों है घुटन,
सनातन शाश्वत गर है धुरी,
तो चलती है क्यों छुरी,
गर लोकतंत्र की गिरी है छवि,
तो कोई तंत्र मंत्र है जरा बताना,
क्या धर्मनिरपेक्षता बुरी है,
तो कोई समाधान जरूर बताना,
गर है कल्पना रामराज
तो सभी एक घाट पानी नहीं पी
रहे हों तो बताना,
गर जुडे हो युगों से
तो सतयुगी सा नहीं है भारत
जरा गौर करना,
त्रेता भी है द्वापर भी
कभी संविधान तो पढ़ना.
जुडे नहीं हो गर विज्ञान से,
भोग रहे कैसे हर सुख सुविधा,
तनिक महात्मा बुद्ध को याद करना,
नहीं जानते तो जानना,
कलयुग कहकर बदनाम मत करना,
कलियुग है विज्ञान है,
कोई चमत्कार नहीं,
हर प्रश्न का उत्तर विज्ञान है.
अज्ञात ज्ञात अज्ञेय गर संसार है,
चालू रहेगा …आगे की कड़ी जल्द ही?