भारतीय महीलाओं का महापर्व हरितालिका तीज है।
हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज भी कहते हैं। यह व्रत इस वर्ष 30 अगस्त को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र उदया तिथि में पड़ रहा है। हस्त नक्षत्र का प्रारंभ 29 अगस्त को रात्रि 11 बजकर 31 मिनट से लेकर 30 अगस्त को रात्रि 11बजकर 52मिनट तक रह रहा है इसलिए 30 अगस्त को हरितालिका पर्व मनाया जायेगा। जिज्ञासा होती है कि क्यों हस्त नक्षत्र में ही हरितालिका मनायी जाती है? इसका समाधान यह है कि हस्त नक्षत्र के स्वामी भगवान सूर्य है एवं सूर्य उपासना से आयुष्य की वृद्धि होती है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न में यदि सूर्य विराजमान हो तो जातक निरोग एवं लम्बी आयु वाला होता है इस कारण से यह पर्व पुरे भारतवर्ष की स्त्रियां अपने पति के लम्बी आयु के लिए निर्जला व्रत करेंगी। यदि महीलाओं को जल पीना आवश्यक हो तो दिन 2:32 मिनट के बाद केवल जल ग्रहण कर सकती है। व्रत का पारण 31अगस्त को दोपहर 1:58 मिनट से पहले करना आवश्यक होगा। के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन भगवान विष्णु का वराह रूप का अवतार भी हुआ था। जब जब पृथ्वी पापी लोगों से कष्ट पाती है तब तब भगवान विविध रूप धारण करके इसके दु:ख दूर करते हैं। दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को जल में डुबो दिया था तब भगवान विष्णु वराह अवतार लेकर पृथ्वी का कल्याण किया था। इनकी शक्ति अथवा पत्नी देवी वाराही हैं जो भगवती लक्ष्मी की स्वरूप हैं और इनमें देवी पार्वती जी की शक्तियां हैं।हरितालिका तीज में
कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शङ्कर की पूजा करती हैं। विशेषकर यह पर्व पुरे भारतवर्ष में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है, वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत सम्पन्न जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
हरतालिका तीज
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन अनुसार वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुबह में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है, इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है। प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक विवाहित ब्राह्मण को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है । प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री इस व्रत रखने से उसका सौभाग्य अखण्ड होता है।