भारतीय ग्रंथों में लिखा है- “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुर
भारतीय ग्रंथों में लिखा है- “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।।“ अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं, उन सद्गुरु को मैं प्रणाम करती हूँ। अगर इसका अर्थ सरल शब्दों में कहूँ तो, इस संसार में गुरु से बढ़कर कोई दूसरा नहीं है। आप उम्र से कितने भी बड़े हो जाएँ, कितने बड़े पंडित या विद्वान हो जाएँ, फिर भी गुरु की सेवा व उनके ज्ञान की सदा हमें जरूरत है। जैसे भगवान इस संसार की रक्षा कर रहे हैं, वैसे ही शिक्षक इस संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य निभा रहे हैं। इसलिए सदा गुरु का सम्मान करना, प्रणाम करना, उनके आदर्श-अनुशासन स्वीकार करना हम सबके लिए आवश्यक है, तभी हम सब अपने जीवन का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर सकते हैं। अंत में मैं अपने उन सभी गुरुजनों को प्रणाम करती हूँ, जिन्होंने मुझे इतना कुछ सिखाया।
सकुन्तला गुणतिलक
श्रीलंका