भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान : कर्नल सी. के. नायडू
भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान : कर्नल सी.के. नायडू
यदि हम कहें कि आज दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यद्यपि आज क्रिकेट खेलने वाले देशों की संख्या महज बीस-पच्चीस ही है, परन्तु यह भी सच है कि बहुसंख्यक देशों में इसे बड़े ही शौक के साथ देखा जाता है। भारत-पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया-इंग्लैंड के मध्य खेले जाने वाले मैचों मे की इसकी लोकप्रियता चरम पर होती है। क्रिकेट की लोकप्रियता की प्रमुख वजह है- खिलाड़ियों को हर साल मिलने वाली करोड़ों रुपए की राशि। क्रिकेट के कारन ही दुनिया उन्हें जानने-पहचान ने लगती है। कैरियर की समाप्ति के बाद कई बड़ी कंपनियाँ उन्हें नौकरी देती हैं, विज्ञापन करने पर करोडों रुपए देती हैं। आज क्रिकेट खिलाड़ी युवाओं का रोल मॉडल बन रहे हैं। आज हमारे देश के बहुसंख्यक युवा सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली जैसे बनना चाहते हैं। आलम यह है कि आज सचिन तेंदुलकर को ‘भगवान’ का दर्जा तक दिया जा चुका है। इस खेल से जुड़े खिलाड़ियों को जो आर्थिक लाभ, आदर, सम्मान एवं ख्याति प्राप्त होती है, वह अन्य खेल के खिलाड़ियों को नहीं होती।
इस माह से आपकी पसंदीदा मासिक पत्रिका ‘हॉटलाइन’ एक नई श्रृंखला आरम्भ कर रही है, जिसमें प्रतिमाह भारत के एक क्रिकेट कप्तान का परिचय प्रस्तुत किया जाएगा। इस कड़ी में आज हम आपका परिचय करने जा रहे हैं- हमारे भारत देश के प्रथम टेस्ट क्रिकेट टीम के कप्तान पद्मभूषण कर्नल सी.के. नायडू जी का।
सी.के. नायडू का पूरा नाम कोट्टारी कंकैय्या नायडू था। उनका जन्म 31 अक्टूबर सन् 1895 को महाराष्ट्र राज्य के बारा बाड़ा, नागपुर के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम कोठारी सूर्यप्रकाश राव नायडू था। वे एक समृद्ध वकील होने के साथ-साथ अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक जागरूक नेता भी थे।
कर्नल सी॰के॰ नायडू भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के पहले कप्तान थे। उन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर की शुरुआत महज 7 साल की उम्र में ही कर दी थी। तब वे अपने स्कूल में क्रिकेट खेलते थे। कालांतर में उन्होंने आंध्रप्रदेश, केंद्रीय भारत, केंद्रीय प्रोविंसेज एंड बरार, हिन्दू, होलकर यूनाइटेड प्रोविंस तथा भारतीय टीम के लिए खेला। 1923 में होल्कर के शासक ने उन्हें इंदौर आमंत्रित किया और अपनी सेना में थल और वायु सेना दोनों के लिए कप्तान बना दिया। बाद में उन्हें होलकर की सेना में ‘कर्नल’ के सम्मान से नवाजा गया। इसके बाद उन्हें कर्नल सी॰के॰ नायडू कहा जाने लगा।
कर्नल सी॰के॰ नायडू का कद छः फीट से भी ज्यादा था। वे दाहिने हाथ से बल्लेबाजी और धीमी गति से गेंदबाजी करते थे। उन्हें प्यार से सभी लोग सी.के. कहकर पुकारते थे। उन्होंने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट की शुरुआत सन् 1996 में बॉम्बे ट्रेंगुलर ट्रॉफी में जबकि अंतरराष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत 25 जून सन् 1932 को इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट मैच से एक कप्तान के रूप में की थी।
उल्लेखनीय है कि आईसीसी द्वारा टेस्ट क्रिकेट टीम की मान्यता मिलाने के बाद यह भारत की ओर से खेला गया पहला अंतरराष्ट्रीय मैच था । यह मैच इंग्लैंड में खेला गया था। उस समय इंग्लैंड की टीम भारतीय टीम के मुकाबले बहुत मजबूत थी, परन्तु कर्नल सी॰के॰ नायडू के नेतृत्व में भारतीय टीम ने उनका जमकर मुकाबला किया, हालांकि भारतीय टीम 158 रनों से मैच हार गई। इस मैच में क्षेत्ररक्षण (फील्डिंग) के दौरान हाथ में लगी गंभीर चोट के बावजूद सी.के. नायडू ने पहली पारी में भारत की ओर से सर्वाधिक 40 रन बनाए थे। इस सीरीज में उन्होंने प्रथम श्रेणी के सभी 26 मैच खेले और 40.45 की औसत से कुल 1665 रन बनाने के साथ ही साथ 65 विकेट भी चटकाए। इसी दौरान उनके नाम किसी एक सीजन में इंग्लैंड में किसी भी विदेशी खिलाड़ी द्वारा सर्वाधिक 32 छक्के मरने का एक अनोखा रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया।
इस सीरीज के बाद कर्नल सी॰के॰ नायडू की गिनती उस समय दुनिया के बेहतरीन आलराउंडरों में होने लगी। यही नहीं सन् 1933 में क्रिकेट की मशहूर पत्रिका ‘विज़डन’ ने उन्हें वर्ष की पांच सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की सूची में शामिल किया था। वे ‘विज़डन’ में स्थान पाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे।
कर्नल सी॰के॰ नायडू का अंतरराष्ट्रीय कैरियर बहुत छोटा रहा। उन्होंने मात्र सात अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेले, जिसमें 25 की औसत से कुल 350 रन बनाए। इसमें दो अर्धशतक शामिल हैं। उनका उच्चतम रन 81 था। गेंदबाजी करते हुए उन्होंने नौ विकेट चटकाए थे। उनकी श्रेष्ठ गेंदबाजी थी – 40 रन पर 3 विकेट।
यह महज संयोग ही है कि कर्नल सी॰के॰ नायडू ने अपना अंतिम टेस्ट मैच 15 अगस्त सन् 1936 को उसी इंग्लैंड के खिलाफ ही खेला था, जिनके खिलाफ उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत की थी।
कर्नल सी॰के॰ नायडू ने छह अलग-अलग दशकों तक अपना क्रिकेट करियर जारी रखा था। उन्होंने अपना अंतिम प्रथम श्रेणी मैच 62 साल की उम्र में सन् 1956-57 में रणजी ट्रॉफी में खेला था, जहां उन्होंने उत्तरप्रदेश के लिए अपने करियर की आखिरी पारी में 52 रन बनाए थे। उन्होंने कुल 207 प्रथम श्रेणी टेस्ट मैच खेले, जिसमें 35.94 की औसत से कुल 11825 रन बनाए। इसमें 26 शतक और 58 अर्धशतक शामिल हैं। उनका उच्चतम रन 200 था। गेंदबाजी करते हुए उन्होंने 411 विकेट चटकाए थे। उन्होंने 12 बार एक पारी में 5 विकेट और 2 बार एक मैच में 10 विकेट हासिल की थी। प्रथम श्रेणी मैचों में उनकी श्रेष्ठ गेंदबाजी थी – 44 रन पर 7 विकेट।
उनके शानदार खेल के कारण कर्नल सी॰के॰ नायडू को भारत सरकार ने सन् 1956 में भारत के तृतीय सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मभूषण से सम्मानित किया था। पद्मभूषण से सम्मानित होने वाले वे पहले भारतीय क्रिकेटर थे।
भारत के इस महान क्रिकेट कप्तान का 72 वर्ष की उम्र में 14 नवंबर सन् 1967 को इंदौर, मध्यप्रदेश में निधन हो गया।
कर्नल सी॰के॰ नायडू की लोकप्रियता आज के क्रिकेटरों से किसी भी रूप में कम नहीं थी। क्रिकेट लेखक स्व. श्री डिकी रत्नागुर ने लिखा है कि स्कूली बच्चों ने अपनी कक्षाएं छोड़ दीं और व्यवसायियों ने बंबई जिमखाना में व्यापार करना बंद कर दिया, जब उन्होंने सुना कि सी के नायडू क्रीज पर आ गए हैं।…..एक युवा लड़के को अपना ऑटोग्राफ देने के बाद सरोजिनी नायडू, जिन्हें कि ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ के रूप में जाना जाता है, ने उससे पूछा कि क्या वह जानता है कि वह कौन है ? तो उसने जवाब दिया था, हाँ, आप सी.के. नायडू की पत्नी हैं।
भारत सरकार की ओर से कर्नल सी॰के॰ नायडू के सम्मान में उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1995 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के पहले कप्तान कर्नल सी॰के॰ नायडू के जन्म शताब्दी वर्ष में बीसीसीआई ने उनकी स्मृति में क्रिकेट के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड की शुरुआत की है। इसमें बीसीसीआई एक ट्रॉफी, एक प्रशस्ति पत्र और 25 लाख रुपए का चेक प्रदान करती है।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़