भारतीयों का दर्द
नहीं भीख ना दान चाहिए, कृपा नहीं सम्मान चाहिए।
टुकड़ों में मत बांटो हमको, पूरा हिंदुस्तान चाहिए।।
याद करो, जब आजादी कि कसमें हमने खाई थीं।
दो – चार की नहीं वरन, हम सब की एक लड़ाई थीं।।
गांधी, सुभाष हों या नेहरू, आजाद भगत या खुदीराम।
हम सबके पीछे दौड़े थे, जीते मरते बस एक काम।।
जय भारत अपना जै होए, सबका बस एक ही नारा था।
हम सब मिलकर यह जीतेंगे, टुकड़ों का नहीं सहारा था।।
आजादी पायी हम सबने, क्या- क्या खोया और किस – किसने।
उन माओं से क्या बोलोगे, बेटों को खोया है जिसने।।
हम मस्त थे जश्न मनाने में, सोए सपनों को जगाने में।
नवयुग, नव सूरज की किरणे, अपने आंगन में सजाने में।।
फिर तुम क्यों ऐसा खेल कर गए, नेहरू – जिन्ना मेल कर गए।
बांट दिया उस आज़ादी को, हम सबको तुम फेल कर गए।।
आहत हैं हम, अब भी उससे, क्या पूछा था तुमने हमसे।
आजादी तुम बांट खा गए, मरे नहीं तुम कभी शरम से।।
अब सुन लो तुम कान खोल के, हमको अपना मान चाहिए।
स्वालंबी हैं, त्यागी है हम, हमें नहीं गुणगान चाहिए।। कृपा नहीं सम्मान चाहिए ………..