भारतमाता
भारतमाता
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“चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥”
चन्द्रकान्त धुव्र की उक्त पंक्तियों से भारत देश और भारतवासियों के विषय में बहुत कुछ स्पष्ट होता है । यह देश हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी साँस ।भारत एक भूभग का नाम ही नहीं अपितु हमारे दिलों में बसी हुई संस्कृतियों का संगम , हमारे रीतिरिवाज , आचार – विचार आदि का अमर इतिहास है ।
उत्तर में पर्वतराज हिमालय , दक्षिण में सागर , पश्चिम में रेगिस्तान एव पूर्व में बंगाल की खाड़ी । हरे -भरे खेतों , झर -झर झरते झरनों , कल कल करती नदियों , ऋषि- मुनियों , देवालयों , शिवालयों की भूमि भारत वर्ष प्रतिवर्ष करोड़ो सैनानियों को अपनी ओर खींचता है ।
यहीं पर कालजयी पुरूषों की स्मृतियों भी ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है राम , कृष्ण जैसे पुरूषोत्तम और सौलह कलावतार की भी यहीं भूमि है ।ऐसी भूमि पर देवता भी जन्म लेने के लिए छटपटाते है ।
भारतभूमि अाध्यात्मिक चेतना का केंद्र मानी गयी है, यहां से मोक्ष का भी द्वार खुलता है । विष्णु पुराण में इस बात की पुष्टि मिलती है —–
“गायन्ति देवा. किल गीतकानि ”
देवता भी इस भारत भूमि के गुण गाते हैं जो भौतिक और आध्यात्मिक सब प्रकार का सुख देने वाले हैं. जहां जन्म लेना बड़े भाग्य की बात है क्योंकि यहां मनुष्य रूप से जन्म लेकर मोक्ष का मार्ग मिलता है.।
आज हम अपने स्वार्थों के आगे पर पीड़ा को नहीं समझते हैं. हम हमेशा नजरअंदाज करते हैं हम अपने अधिकारों की झोंक में भूल जाते है कि देश के प्रति, मातृभूमि के प्रति जो नागरिक दायित्व रखते हैं , पालन करना चाहिए ।
‘हम संविधान द्वारा दी तरह-तरह की आजादी का तो ढोल पीटते हैं, लेकिन कर्तव्य हमें याद नहीं रहते. उन कर्तव्यों का पालन करने से ही यह मातृभूमि विश्व में यशस्वी व प्रतिष्ठित हो सकेगी.। श्रीकृष्ण ने कर्तव्यपालन को पूजा का नाम दिया ।
भारत अध्यात्म की जन्मभूमि है, आज भी दुनिया भर से अनेक लोग आध्यात्मिक शांति की खोज में यहाँ आते हैं और कई यही के होकर रह जाते हैं ।वस्तुत: अध्यात्म मन की शांति का नाम है है जो व्यक्ति को मानवता से जोड़ता है और पूरी दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सूत्र में बांधता है. यह विश्व को भारत भूमि अनुपम एवं अद्वितीय देन है.।
लेकिन आध्यात्म की भूमि कहलाने वाली भारत भूमि की शांति को देश में ही रहने वाले अपने को राजनीतिज्ञ कहलाने वाले नेताओं ने भंग कर रखा है यहीं लोग समय – समय पर धार्मिक और साम्प्रदायिक उन्माद को लोगों के दिल में सुलगाते है और परस्पर भड़के अलगाववाद में अपना उल्लू सीधा करते है ।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि देश को चलाने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत है जो साम्प्रदायिक अलगाव की राजनीति से उपर उठ प्रेम एवं भातृत्व की भावना उत्पन्न कर सकें तभी देश का खोया गौरव पुनः वापस आ सकता है ।
डॉ मधु त्रिवेदी