भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी
मृदुल सुमनोहर गात्र शिशु , करते क्रीड़ांगन धूल में लोट,
देख रहा नभ , दिव्य विविधता , अपलक छुपे झुरमुट की ओट,
फैला इनके तन का तप, पदतल में धूसरित कुलिश विचार,
हर्ष-प्रतिध्वनी हर छोर अकंटक,व्यक्त सजल संसृति संचार।
विस्मृत सन्निकट धूल शेष,
नहीं दुर्बलता का चिह्न विशेष !
पुण्यभूमि से नीले वितान तक,
विधू सत्य भुवन विस्तारिणी ,
वंदन ! भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी।