भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी
उत्फुल्ल अकंटक भाव-भुवन पुलक-पुर्ण उत्साही,
दिशा दीप्त , भय-विस्मय रहित , प्रेम जगती मुसुकाहीं ।
अधीर हृदय अकिंचन इस तन में, एक अभाव अनिश्चित ,
रूप-दर्प-सौन्दर्य उत्कण्ठित , अकण्टक राज्य अभीप्सित ।
बाह्य मृदुलता , अतुल युक्ति ,कुलिश कठोर पुण्य तोष ;
पदपाणी नत भूतल स्थित , ज्योतिरंजित-भूति , पद्म-कोष !
अश्रु अर्ध्य पादोपरि पूरित समर्पित ,
ज्वलित दिव्य तेज भाव विस्तारिणी ,
वंदन ! भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी।
✍? कवि आलोक पाण्डेय