भात
पकने वाला है नहीं, इस हांडी में भात ।
किस्मत ने धोखा दिया, लगी पेट पर लात।। १
हाय गरीबी भूख से,सोच रहा दिन रात।
ठंडा हो या हो गरम,मिले पेट भर भात ।। २
बिलख बिलख कर भूख से, बोला मेरा लाल।
माँ देखो चावल भरा, है अंबर के थाल।। ३
धान बुआई हो तभी, जब होती बरसात।
नित्य स्वप्न में देखता,मिले पेट भर भात ।। ४
कृषक गगन को देखता, कब होगी बरसात।
पके धान की जब फसल, मिले पूत को भात।। ५
पनप रहा है दूधिया, खेतों में नवजात।
होगा जब परिपक्व यह, तभी बनेगा भात।।६
चावल का हर एक कण, है मोती का रूप।
सीपी जैसे धान में,पकते पाकर धूप।।७
कोटि कोटि दूध सा,श्वेत मुलायम भात।
मीठा-मीठा स्वाद है,तृप्त हुआ हर गात।।८
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली