भाड़ में जाओ तुम
एक ही शख्स था दिल के सोहबत में
ठोकरें लगी उसी के उल्फत में
क्या तकल्लुफ करुं ये कहने में
भाड़ में जाओ तुम,
खुद ही संभलते हैं हम खल्वत में
चुरा लेगा दिल से दिल की धड़कन भी
किसे खबर छुपा है क्या किस की फितरत में
अब सभी खतरे से मैं बारहा बाहिर हूॅं
अब कोई खतरा नहीं दिल के ग़फ़लत से
दिल को आखिर इतनी क्यों छूट मिले
कि चूमता रहे यार ए दर उस की चाहत में
हैं और सौ मसाईलें इस दुनिया में पुर्दिल
सब कुछ नहीं यार – ए – सुखन के हिकमत में
~ सिद्धार्थ