भाग रही
नारी है वह ,नार नहीं
उनकी लीला न्यारी है
पता नही उस बेला का
,जो तुमको प्यारी है
दिल में बैठी तेरे अंदर
,तब तो ब्रम्हकुमारी है
उन दिल पर कोई और बैठा
,नार हृद लाचारी है
तुम तस्थस रहो पर्वत सा,
वह धार नदी सा भाग रही
तुम सोये रहो शयन कक्षपर
वह संग किसी का जाग रही
तुम मस्त रहो मतवाला बनकर
कमजोरी तेरी जान रही
ज्योति मौर्य का अनुकरण कर
कवि विजय संग भाग रही।