भाग्य
विषय-भाग्य
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कर्म से भागे मत फिरो, कर्म ही भाग्य बनाता है।
मनुज कर्म की सद्गति से, उज्जवल मस्तक पाता है।
सुख-दुखों के व्यापार में, जिसने भी शांति पाई है।
सब मूल्यों से ऊपर उठ, मस्तक लकीर बनाई है।
लिखा भाग्य में जो आया, कहो कौन मिटा सकता है।
खेल न्यारे कर्म के नर, भाग्य अपना लिख सकता है।
बेल प्रेम की बो देखो, अमृत से फल वह पाता है।
विधिना क्या लिखती उस पर, जो निज रेखा बनाता है।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश