भाग्य लेख : एक पहेली
भाग्य लेख को ना कभी हम पढ़ पाए ,
क्या मंजूर है इसे कुछ समझ न पाए।
ज्योतिषियों के घर भी चक्कर लगाए,
वो भी हमारे भाग्य लेख को पढ़ ना पाए ।
लगभग ७५ ज्योतिषियों को अजमाया ,
सबने अपना भिन्न भिन्न उपाय बताए।
कई टोटके और दान पुण्य करवाए गए ,
कालसर्प योग/ग्रह शांति पाठ करवाए।
मंदिरों में जा कर पंडितों से हवन ,
और बाद में चढ़ावे भी बहुत चढ़वाये ।
अनेकों उपायों करने के बाद भी ??,
हे भगवान ! अब और क्या है उपाय ?
सोचा अब चलो स्वयं उसे प्रसन्न करें,
हमने कई व्रत अनुष्ठान भी शुरू किए।
देवी देवताओं को खुश करने को ,
उनके मनपसंद मिष्ठान भी बंटवाए।
अब तो हद हो गई ,इतना कुछ करने से ,
भई ! हम बाज़ आए , अब तो थक गए ।
छोड़ दिया ज्योतिषियों के घर का फेरा,
जन्म पत्री को यमुना जी में बहा आए।
मंदिरों में देवी देवताओं को प्रसन्न करना,
और पंडितों के पेट भरने भी छोड़ दिए ।
श्री कृष्ण भगवान की भागवत गीता पढ़ी,
और हम निष्काम कर्म पथ पर उतर आए।
तब से अब तक न कोई चाह है ना तड़प,
जीवन नैया को उसके सहारे छोड़ आए।
यह तो पिछले जन्म का प्रारब्ध है भाई!,
कर्मो से बने भाग्य को कौन बदल पाए ।
जीवन के सांध्यकाल पर आकर ही हम ,
असली जीवन के उदेश्यों को समझ पाए।
यही सोचकर की अब जन्म तो खत्म हुआ,
अब अगले जन्म के लिए उपाय किए जाए।
सुकर्म और भगवान की आराधना में ही ,
अब शेष जीवन अर्पण कर दिया जाए।