भाग्य – कर्म
भाग भाग के थक गये,भाग्य से ना भाग सके ।
जो भाग भाग्य मे मिले,भाग के ना कोई तज सके।।
भाग्य अपना आपसे होये,भाग्य कर्म से लिखा होये।
कर्म जो अपना भाग्य बने,भाग्य विधाता सदकर्म बने।।
हाथ माथ मे भाग्य लिखा होय,पढ़ पढ़ के जो ज्ञात होये।
कहे करे कर्म धर्म पूर्ण,भाग्य भरोसे जीवन ना चले।।
भाग्य मिला तो अप मिले,जैसे सुसंगत सज्जन को मिले l
संगत से सज्जन है चमके,तैसे कर्म से भाग्य है दमके।।
भाग्य से ना कम भाग्य से ना ज्यादा,कौन हुआ भाग्य विधाता।
भाग्य ना जाने किसी का भाग्य,भाग्य ना मिटे अपने भाग्य।।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश।