भाग्य और कर्म
भाग्य और कर्म है ,
एक-दूसरे के पूरक |
जो कर्म नहीं करता है ,
भाग्य नहीं उसका फलता |
मानव मन अब लोभ से लिप्त ,
इससे हुआ उसका जीवन रिक्त |
चाहता है बादशाहत को अपनाना ,
पर जानता नहीं क्या है करना |
कर्म को छोड़ अब हर मानव ,
उलझा बस भाग्य की लकीरों में |
अनजान है कर्म व भाग्य से ,
फँस गया इस मायाजाल में |
जानो तो भाग्य और कर्म में ,
अक्सर होती रोज़ लड़ाई |
भाग्य मन तोड़ता है ,
कर्म फिर उसे जोड़ता है |
अंतर्मन से अपनाओ ये बात ,
दृष्टिकोण को बदल लो आज |
बिना कर्म किए भाग्य नहीं सँवरता ,
मानव जीवन का अर्थ नहीं फलता |
श्रीकृष्ण ने कही ‘गीता’ में जो बात ,
उसी पर चलकर कर लो कुछ खास |
भाग्य और कर्म साथ-साथ है चलता ,
बिना कर्म किए भाग्य नहीं बनता |