मेहनत की रोटी
गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ धर्म-उपदेश देते घूमते रहते थे। वे भूखे–प्यासे एक बस्ती में पहुँचे। शिष्यों ने सवाल किया कि यहाँ हमें भोजन कौन देगा ? तभी एक दीन-हीन बढ़ई वहाँ आकर बोला, ‘‘आप सब मेरे घर चलें।’’ उसके घर में खाने को कुछ न था। उसने सोचा कि इन सबको घर में विश्राम करने दिया जाए। दिन भर मेहनत करके जो कमाऊँगा, उससे खाने-पीने का बंदोबस्त करके शाम को इनकी सेवा करूँगा। वह अपने मालिक के यहाँ काम करने चला गया। नानक और उसके शिष्य भूखे ही सो गए। बढ़ई का नाम था लालो और जिस धनाढ्य के यहाँ वह काम करता था, उसका नाम था भागो। धनाढ्य ने उस दिन नगरभोज किया था। सबको खाना खिलाते-खिलाते शाम हो गई। लालो बढ़ई अपनी मजदूरी लेकर घर गया। उसकी पत्नी रोटी बनाने लगी।
तभी भागो सेठ ने आवाज लगाई-‘‘ मेरे नगर भोज के बाद नगर में कोई भूखा तो नहीं बचा है ?’’ उसके नौकरों ने बताया कि लालो बढ़ई के घर कुछ साधु भूखे सो रहे हैं। सेठ ने बढ़ई के घर सोए नानक सहित सभी साधुओं को बुलवा लिया और भोजन करने का आग्रह करने लगा। नानक बोले, ‘‘आपके नौकर लालो के यहाँ भी अब तक रोटियाँ बन गई हैं। उन्हें भी मँगवा लें’’ सेठ को ये नागवार गुजरा लेकिन उसने लालो बढ़ई के घर से रोटियाँ मँगवा लीं, फिर नानक से पूछा ‘‘महाराज, मेरे खाने में ऐसी क्या कमी है, जो मेरे नौकर के घर से खाना मँगवाया है।’’ नानक बोले, ‘‘ अभी बताता हूँ।’’ यह कहकर उन्होंने भागो सेठ की रोटी तोड़ी तो उसमें से खून बहने लगा। फिर लालो बढ़ई की रोटी तोड़ी तो उसमें से दूध की धार बह निकली। नानक ने सेठ से कहा, ‘‘तेरी कमाई गरीबों के शोषण की है और लालो बढ़ई की कमाई मेहनत की है।’’