भागवत को जवाब
दिल्ली बलात्कार कांड की
आड़ पर
संघ प्रमुख भागवत ने
बघारा अपना संस्कृति-ज्ञान
‘इंडिया बनाम भारत’
अर्थात
‘भारतीय बनाम पाश्चात्य’
संस्कृति का अलापा राग
कहा-‘भारत में नहीं
इंडिया में होते हैं
बलात्कार’
इतिहास खंगालें
और अपने दिमाग का
इलाज कराएं भागवत.
बर्बर-बलात्कार की
वारदातें
शहरों में ही नहीं
गांवों में भी होती रही हैं,
हो रही हैं
कितनी ही वारदात गांवों में दबकर
रह जाती हैं.
किशोरवय में ऐसी कितनी ही
घटनाओं का गवाह हूं मैं
जहां सामंती दबाव
और लड़की की इज्जत
की दुहाई देकर-
लड़के की जवानी की नादानी
बताकर
गांवों में ही दबा दी
जाती थीं घटनाएं,
फिर इन वारदातों में
सब हैं भागीदार,
बड़े-बूढ़े, जवान, पढ़े-लिखे
या हों कोई शहरी या गंवार.
बलात्कार उत्पीड़न के
असल जिम्मेदार हैं
गांवों के सामंती संस्कार
हिंदू धर्मग्रंथ जिन्हें
देते हैं बढ़ावा
जिनमें
नारियों को पुरुषों की दासी
नरक की कूप
दुर्गुणों की खान बताया है.
‘देवी पूजन’ की बात
सिर्फ है छलावा
शहर तो
नारी-पुरुष समता
के पैरोकार हैं
व्यवहारिक रचनाकार हैं
जिस ‘पश्चिमी-संस्कृति’
का खौफ दिखाते हैं भागवत
वहां नारियां-
हर मोड़, हर सोपान पर
पुष्पित हैं-पल्लवित हैं
‘पश्चिम बनाम भारतीय’
संस्कृति का भय दिखाना
सिर्फ शुतुरमुर्गी चाल है
संस्कृति की आड़ में
सोपान-क्रम
प्राचीन समाज व्यवस्था का
पोषण-संवर्धन है.
नारियों की प्रगति राह में
रोड़ा है, अड़चन है.
– 14 जनवरी 2013