भागदौड़ भरी जिंदगी
भागदौड़ भरी जिंदगी
मनुष्य के जीवन की तीव्रता वाहनों से भी अधिक हो गई है। वाहनों के ऊर्जा स्रोतों में निरंतर विकास हुआ है, जबकि मनुष्य के ऊर्जा स्रोतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। तो फिर इतनी तीव्रता कहां से आ रही है? वर्षों से हमने अपने भीतर जो उच्चतम कोटि की ऊर्जा का संचार किया है, वही अब तक हमें बनाए हुए है। लेकिन क्या हो अगर यह संचित ऊर्जा समाप्त हो जाए?
आजकल की हमारी जीवन शैली और खानपान में इतनी अधिक गुणवत्ता नहीं है कि हम अपने ऊर्जा का प्रभावशाली ढंग से निर्माण कर सकें। जब यह ऊर्जा समाप्त हो जाएगी, तो हमारे पास सफाई देने के लिए यह कहना पर्याप्त होगा कि पर्यावरण दूषित है। शायद इससे हम और हमें सुनने वाले को भी संतुष्टि प्राप्त हो जाए।
क्या हम अपने खानपान में बदलाव करके ऊर्जा के नए स्रोत का विकास नहीं कर सकते? क्या जीवन शैली में बदलाव करके इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता? आजकल हम पश्चिमी सभ्यता द्वारा सुझाए गए तरीकों पर अधिक विश्वास करते हैं। क्या हमारे भारतीय इतिहास में सुझाए गए उपायों का प्रयोग करके इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता? अनुभव से पता चलता है कि मनुष्य उन उपायों पर अधिक विश्वास करता है जिनका परिणाम तुरंत प्राप्त हो जाए।
यह कहना कहां तक उचित होगा कि जो परिणाम हमें तुरंत मिले वह अधिक लाभदायक ही हो? हमारी भारतीय सभ्यता में सुझाए गए उपाय प्रभाव दिखाने में समय ले सकते हैं, किंतु यह प्रभाव लाभदायक रहेगा और लंबे समय तक प्रभावशाली भी होगा। तो आइए, हम पुनः अपनी भारतीय परंपरा में लौटते हैं जहां हमारे जीवन को जीने के लिए बताए गए तरीके प्रभावशाली हैं।
**बिन्देश कुमार झा**