भाई-बहिन का प्यार
है डोर बाॅंध प्रेम की , मनौती मांग क्षेम की ,
वो साध रीति नेम की , राखी को मनाती है ।
भाई-बहिन का प्यार , भर हिय में दुलार ,
सॅंग-सॅंग अनुहार , भाव को सजाती है ।
सुख -दुख के सॅंघाती , सहजरुपता निभाती ,
राज कुछ न बताती , मना को लुभाती है ।
ससुराल या पीहर , राखी त्योहार ठीहर ,
रस्ता सटीक जी हर , यही न भुलाती है ।।
पावन पवित्र दिन , बीत रहा छिन -छिन ,
जोहत पथा भगिनि , बीरन न आयो है ।
जाने कौन आयो काज?, जान न सके वो राज ,
या भयो बड़ो विराज , शेखी को भुनायो है ।
रोष से हुई है लाल , हिया भरे है मलाल ,
बदली है चाल-ढ़ाल , मनही सुनायो है ।
जबहीं सुना कि आये , हिय मा उमंग छाये ,
घीया दीपक जलाये , राखी पहिराये है ।।
जुग-जुग जीवें भाई , उनकी बढ़े कमाई ,
यही कामना भलाई , सुखा तौ नाहीं खपे ।
कभी न विषाद होवे , नाहीं कोई खार बोवे ,
कोई न किसी की खोवे , भाईचारा पनपे ।
राम-राम सीताराम , राधे-राधे घनश्याम ,
हर कोई यही नाम , सुबह-शाम जपे ।
राखी बाॅंधूॅं हर साल , सभी रहें खुशहाल ,
भाई जू बनें भुआल , यश चहुॅं मा छपे ।।
है टूटे नहीं विस्वास , यही एक अरदास ,
भरे नहीं हिया गाॅंस , सुख-शांति भर दें ।
प्यार भी दुलार भी हो , संव्यवहार भी हो ,
चरित उदार भी हो , रंग – ढ़ंग कर दें ।
शान भी हो मान भी हो , उन्नत वितान भी हो ,
भरपूर ज्ञान भी हो , प्रभु ऐसा वर दें ।
ना रहे कभी विषाद , ना दिखे कहीं विवाद ,
है नाहीं फैले उन्माद , सुकुलीन घर दें ।।
रूपए-सूपए नहीं ,भरना कूपए नहीं
कामना भूपए नहीं , धना यही दीजिए ।
ना अमीरी ना गरीबी , बातन माहीं जरीबी
सब लागयॅं करीबी , मना यही दीजिए ।
पावन पवित्र छिन , सावन सुचित्र दिन ,
भावन सुमित्र दिन , बना यही दीजिए ।
करिए हमें सनाथ , सदा झुका रहे माथ ,
दान हेतु उठे हाथ , फना यही दीजिए ।।
सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक व बधाइयाॅं/ शुभकामनाएॕं !
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय , अमेठी