भाई बनाम पड़ोसी
संयुक्त परिवार के बीच गृहस्थी ठीक-ठाक चल रही थी। बड़ी भाभी का व्यवहार वैसे तो ठीक था, लेकिन अंदरखाने उनका यही मानना था कि घर में जो कुछ करते हैं, उनके ही पति करते हैं। बात भी किसी हद तक ठीक थी। पिताजी के बाद बड़े भाई ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया था।
एक दिन हुआ यूं कि खाना बनाने की जिम्मेदारी उस दिन बड़ी भाभी की थी। रात के लगभग 11 बज चुके थे। भाभी ने अपने पति और बच्चों को खाना खिला कर सुला भी दिया था। देवर और देवरानी ही खाना खाने के लिए रह गए थे।
रात 11 बजे के बाद देवजी जब घर पहुंचे, सीधे किचन में जाकर खाने का जायजा लिया। वहां सिर्फ चार रोटियां और थोड़ी सी सब्जी बची रखी थी। यह देखने के बाद देवर फ्रेश होने चले गए। इतने में देवरानी ने खाना परोस दिया था।
देवर जी ने अपनी पत्नी से खाना शुरू करने को कहा। वह खाना कम होने की बात को छुपाते हुए बोली- आप खा लीजिए, दोपहर में खाना देर से खाया था, इसलिए मेरा मन नहीं है। देवर ने चार में से दो रोटियां खाकर खाना अलग रख दिया। बोले- एक दोस्त के घर नाश्ता कुछ हैवी हो गया था, इसलिए ज्यादा भूख नहीं है। यह सुनकर देवरानी ने कहा- किचन में कहां झूठा खाना रखूं? इस खाने को मैं ही खा लेती हूं।
इसके बाद अगले दिन वही हुआ जो बहुत दिन पहले हो जाना चाहिए था, जैसा कि बड़ी भाभी चाह रही थी। दो लोग भाई-भाई से वह पड़ोसी बन गए थे। छोटा भाई बराबर में खाली पड़े दूसरे मकान में अपने परिवार के साथ शिफ्ट हो चुका था।
© अरशद रसूल