” भविष्य का आईना “
तुमने क्या सोचा की मैं कौन हूँ ?
भविष्य का आईना हूँ मैं
नही सोचना की मैं मौन हूँ ,
तुम्हारी एक – एक चाल से वाकिफ हूँ
तुम मानो न मानो
मैं अंधकार नही साक़िब हूँ ,
हर बार तुमको चेताता हूँ
तुम समझ नही पाते
फिर भी चेतावनी दे दे बताता हूँ ,
देखो मैंने हाथ बढ़ाया है
तुम नही जानते
ये सब मेरी ही माया है ,
हर युग में मैं आता हूँ
अपने बारे में मैं
बार – बार समझाता हूँ ,
क्या – क्या तुमने लिया गढ़
क्या – क्या नही तुमने लिया कर
पर क्या तुमने कभी भी मुझको लिया पढ़ ?
तुम ज्ञान में अज्ञानी हो गये
अपनी सफलता की दौड़ में
हद से ज्यादा अभिमानी हो गये ,
डरो मत मुझसे ज़रा सा तो देखो तुम
मेरे पास तो आओ
क्षण भर को मुझे छू कर तो देखो तुम ,
तुम्हारे ज्ञान का भंडार हूँ
समझो मुझको तुम
सारे आविष्कारों का सार हूँ ,
मुझको मज़ाक में मत लेना तुम
अब भी नही संभले तो
फिर खुद मज़ाक बन झेलना तुम ,
मैं तो आगाह करने आया हूँ वर्तमान में
तुम्हारी फिक्र है मुझको
इसलिए नही हूँ मैं किसी अभिमान में ,
मैने तुम्हारे लिए दिन रात एक किया
तुम भी तो कुछ सीखो
कैसे मैने खुद के लिए वर्तमान को जिया ,
लेकिन तुम भविष्य सवाँरने में
वर्तमान से खेल रहे हो
और खेल ही खेल में
वर्तमान को झेल रहे हो ,
अगर भविष्य खूबसूरत है पाना
वैसा जैसा तुमने है माना ,
तो पहले वर्तमान संवारो
भविष्य को आईने में उतारो ,
अब भी कुछ नही है बिगड़ा
ना ही किसी बात का है झगड़ा ,
चलो फिर पहल करो
भविष्य की पहेली
वर्तमान में हल करो ।
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रकाशित
( ममता सिंह देवा , 25/04/2020 )