Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Aug 2020 · 1 min read

भला क्यों?

हो गया है जब बिछुड़ना ही सुनिश्चित,
और थोड़ा वक्त अब माँगूँ भला क्यों ?

प्यास सागर भी बुझा पाया नहीं जब,
ओस की बूँदों से फिर विनती क्या करनी।
मित्रता जब कर ही ली है कंटकों से।
घाव कितने मिल रहे गिनती क्या करनी।।

लूँ मदद मैं इत्र की क्यों? सोचता हूँ।
पुष्प ही जब गंध मुझको दे न पाये।
याचनायें मरहमों से ही करूँ क्यों?
बैद्य ही जब देख मुझको खिलखिलाये।

मुस्कुराती मृत्यु के बदले कहो तुम।
जिंदगी अभिशप्त अब माँगूँ भला क्यों।

क्यों सजाऊँ दर्द की इस देहरी पर,
सोचता हूँ सप्तरंगी अल्पनाएं।
क्यों खँगालूँ शब्दकोशों के भी पन्ने,
क्यों करूँ अब व्यर्थ में ही कल्पनाएं।

दीप कर देगा उजाला मान लूँ क्यों,
सूर्य जब नभ से धुआं बरसा रहा है।
नव्य उपमाएं तलाशूँ पर भला क्यों,
गीत ही जब रुष्ट होकर जा रहा है।।

छांव बरगद की न दे पायी सुकूँ जब,
फिर दुपहरी तप्त अब माँगूँ भला क्यों?

तुच्छ सी इन चंद साँँसों के लिये मैं,
गिड़गिड़ाऊँ है न यह बिल्कुल गवारा।
प्रेम करना धर्म मेरा कर्म मेरा,
किंतु है अधिकार, ठुकराना तुम्हारा।

मैं यही कोशिश करूंगा अंत तक भी,
कत्ल का इल्जाम ये तुम पर न आए।
मैं भले सौ बार मर जाऊँ न गम है,
किंतु तेवर एक कवि का मर न जाए।।

एक दिन मिट्टी में मिलना ही अगर है,
फिर कहो तुम तख्त अब मांगू भला क्यों?

प्रदीप कुमार “दीप”
सुजातपुर, सम्भल (उ०प्र०)

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 382 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
🙅ताज़ा सुझाव🙅
🙅ताज़ा सुझाव🙅
*प्रणय*
आत्मा नित्य अखंड है, जहाँ नहीं कुछ भेद।
आत्मा नित्य अखंड है, जहाँ नहीं कुछ भेद।
Dr. Sunita Singh
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
गुज़रे वक़्त ने छीन लिया था सब कुछ,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरा तकिया
मेरा तकिया
Madhu Shah
आपके द्वारा हुई पिछली गलतियों को वर्तमान में ना दोहराना ही,
आपके द्वारा हुई पिछली गलतियों को वर्तमान में ना दोहराना ही,
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
वास्तविकता से परिचित करा दी गई है
वास्तविकता से परिचित करा दी गई है
Keshav kishor Kumar
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
Mukta Rashmi
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पेड़ से कौन बाते करता है ?
पेड़ से कौन बाते करता है ?
Buddha Prakash
सफ़र
सफ़र
Shashi Mahajan
नव वर्ष का आगाज़
नव वर्ष का आगाज़
Vandna Thakur
മനസിന്റെ മണ്ണിചെപ്പിൽ ഒളിപ്പിച്ച നിധി പോലെ ഇന്നും നിന്നെ ഞാൻ
മനസിന്റെ മണ്ണിചെപ്പിൽ ഒളിപ്പിച്ച നിധി പോലെ ഇന്നും നിന്നെ ഞാൻ
Sreeraj
जिंदगी जी कुछ अपनों में...
जिंदगी जी कुछ अपनों में...
Umender kumar
किसी के वास्ते इसे
किसी के वास्ते इसे
Dr fauzia Naseem shad
चाँद...
चाँद...
ओंकार मिश्र
अब न तुमसे बात होगी...
अब न तुमसे बात होगी...
डॉ.सीमा अग्रवाल
बचाये रखना तुम प्रेम कुछ उन दिनों के लिए,
बचाये रखना तुम प्रेम कुछ उन दिनों के लिए,
पूर्वार्थ
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
Ravi Prakash
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
Ravikesh Jha
सफ़र जिंदगी का (कविता)
सफ़र जिंदगी का (कविता)
Indu Singh
*मेरा सपना*
*मेरा सपना*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
दूर कहीं जब मीत पुकारे
दूर कहीं जब मीत पुकारे
Mahesh Tiwari 'Ayan'
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
राहुल रायकवार जज़्बाती
आखिर क्यों तू
आखिर क्यों तू
gurudeenverma198
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
4482.*पूर्णिका*
4482.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
उम्मीद का टूट जाना
उम्मीद का टूट जाना
हिमांशु Kulshrestha
"सवाल"
Dr. Kishan tandon kranti
आज़ादी के दीवाने
आज़ादी के दीवाने
करन ''केसरा''
Loading...