भला आग से आग बुझाते हैं क्या
भला आग से आग बुझाते हैं क्या
आंधियों से दीये जलाते हैं क्या
जो पीर दर्द के मायने बदल दे
उस दर्द पर मरहम लगाते हैं क्या
नज़र महफ़िल में किसे ढूँढ रही थी
राज़ दिल के सबको बताते हैं क्या
दिल की बात आँखें पढ़ नहीं पाई
वो नज़र का चश्मा लगाते हैं क्या
महबूब से ज्यादा प्यार माँ से हो
तो फ़ाख्ता बेवफ़ा हो जाते हैं क्या
सागर