भर्या की दारू दवाई
***** भर्या ही दारू-दवाई ******
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सुनो-सखी करवाचौथ पर्व आया है,
मेरे मन में फिर से डर समाया है।
पतिदेव तन-मन स्वामी हो दीर्घायु,
बाल भी बांका न हो लगे मेरी आयु।
मदिरा सेवन करते जबसे हुई शादी,
मयकशी दिलबर मेरे मय के आदी।
नशे की लत तज हो हूँ मैं फरियादी,
जी भर जीऊं जीवन संग आजादी।
छलनी में देखूँ उसे है चाँद से प्यारा,
प्रियतम ही है सुख-दुख का सहारा।
आरती करूँ मैं माथे तिलक लगाऊँ,
सिर के साये को भर आंखें निहारूँ।
मनसीरत मन मंदिर में मूरत समाई,
सुखी जीवन की भर्या दारू-दवाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)