भरो हुंकार
गीतिका
करो प्रत्यंचा की टंकार।
क्रांति भाव का करो व्यापार।
बिना भय के माने कोई न।
भरो तुम रोषमयी हुंकार।
सुकृत उपसृत कर उर में आप।
मोह का तम कर दो अपसार।
राष्ट्र के प्रति भर -भर उत्साह।
देश प्रेम करो उर संचार।
राष्ट्र ही माँ पालक गुरु बंधु।
यहाँ श्वांस लेता संसार।
करें विद्रोह राष्ट्र से लोग।
छीन लो जीने का अधिकार।
कर रहा है अवनत पाश्चात्य।
करो ‘इषुप्रिय’ अब आप विचार।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुरकलाँ,सबलगढ(म.प्र.)