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3 Jul 2022 · 1 min read

भरोसा

आखिर आ ही गयी
ये सोच भी
सरहदें फलांग कर
कि
सर तन से जुदा!!

माना कि, मुट्ठी भर
लोग ही होंगे
इस तरह के अभी,

चलो ये भी माना कि
हम तुम नहीं हैं,
इनमें शामिल

पर ये भी कब
कहा कि
गलत हुआ,

इस मौन को अब
क्या समझा जाये?

कोई डर है क्या?

निस्पंद ही रहना है?

या नफ़रतें पाल रखी हैं
औऱ खुश हैं

कि एक दम सही हुआ?

आखिर ये माज़रा क्या है !!

दोमुहें बुद्धिजीवियों
से,
न पहले ही कोई अपेक्षा थी
न अब कोई आशा!!

भरोसे का टूटना
आवाज़ भले न करता हो,
पर खाइयाँ पाट देता है
कभी न भरने वाली!!!

अब इस मोड़ पर
रूबरू हैं,
हम और तुम
आँखों में आँखे डाले हुए,

एक प्रश्न के साथ!!

कि, गलत को गलत
और सही को सही
कहा जाये,

या मुँह फेर कर
इसे ऐसी ही हवा दी जाए,
मौन सांसो के बीच,

कि कुछ भी तो नहीं हुआ!!

काश!!
इतने सालों में
कुछ होश के
नाखून उगाये होते,

और इस चुप्पी के
खिलाफ भी कुछ
फरमान जारी होते!!!

Language: Hindi
236 Views
Books from Umesh Kumar Sharma
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