[[ भरोषा नहीं है मुझे अब किसी पर ]]
भरोषा नहीं है मुझे अब किसी पर
कई बार रोया हूँ मैं जिंदगी पर
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नही रास आता मुझे ये जमाना
हँसा जा रहा है मेरी सादगी पर
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सियासत मुहब्बत पे होती है यारो
हँसा है जमाना मेरी आशिक़ी पर
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उड़ाने उडी थी मुहब्बत की मेने
गिराया खुदा ने मुझे अब नदी पर
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यक़ीनन तमाशा करेगा जमाना
यकीं ही नही है मुझे अब किसी पर
■■■■[ नितिन शर्मा ]■■■■