*भरी हुई हैं ह्रदय मेरे *
बहुत दुखातीं ह्रदय मेरा, चुभन भरी बातें प्रखर।
मैं मौन सदृश सा सहता, पल पल रिश्ते कडुए स्वर।
मग़र क्या है ? फिर भी तो
बाण छूटते ही आते हैं ।
मात्र तलाबी साँपों जैसे
फन फन फिर दिखलाते हैं ।।
छिपे सडन के कीड़े कटुए,भला गर्वते हैं किस पर ।।
सिर धुनती हैं सांझ सवेरे,
कितने माह पुरानी बातें ।
चित्र बनाकर के रँगती सी
भिड़ करके घातें प्रतिघातें।
आँखों की पुतली में रह ,दिखता है परसों का मंजर।।
खड़ी दिखती है हाथों में
लिए हुए पत्थर सी सिल।
नँगे सिर पर आ लगती हों
मानों उठकर के तिल तिल।
भरा होश है जब से बाँहों,विष पाया है अंजुलियां भर।।
मुझको वे असहाय समझकर,
ही तो आते– हैं —-अवरोध।
इसलिए सहस्र जनों के सम्मुख
होता– रहता– रोज —विरोध ।।
कब तकऔर पिलाओगे तुम काल गरल सा उगल जहर।
मैं साधू हूँ ,तुम दौड़ाओ
यों ग़लीयों में बौराये से ।
रचो रोज दुर्नीति व्यूह ,
टूटेंगे खुद वो साये से ।।
तुम आओ खलनायक बनकर,करो बिंदु मेरा जर्जर ।।
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अब् तक जीवन के वर्षों में
तुमने करना चाहा है अस्त।
किन्तु कृपा से बढ़ता आया
करने कोई वो मार्ग प्रशश्त ।।
और कुमुद सा खिलता आया,अब् तक नव सम्बत्सर ।।
तुम हंसो मुझे खिल खिलाकर
मत देखो आँखों काबहता पानी ।
पाप भोगता श्राप महातम
कहता है इतिहास कहानी ।।
मैं होऊंगा या नहीं दुनिया में,तुम्हे भोगते देखेगा वो नर।
मिलती है औकाद धूल में
जब आता है चक्र घूमकर।
भर लेती है बांहु पाश में
आकर गले मौत चूमकर।
मचाते रोज द्वेन्द फिजुली ,तु,मको नहीं लगता है डर।।