*भरत राम के पद अनुरागी (चौपाइयॉं)*
भरत राम के पद अनुरागी (चौपाइयॉं)
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1
भरत राम के पद अनुरागी।
सत्यनिष्ठ सेवाव्रत त्यागी।।
भरत राजसत्ता वैरागी।
षड्यंत्रों में तनिक न भागी।।
2
कहा राम से राज्य सॅंभालें।
गमन बोझ वन मुझ पर डालें।।
सहित शत्रुघन हम वन जाऍं।
रामचंद्र प्रभु पद फिर पाऍं।।
3
राजा राम सिया हों रानी।
अमर रहे यह सदा कहानी।।
नहीं भरत-सा अनुपम भाई।
लोभ-वृत्ति जिसमें कब आई।।
4
गुरु वशिष्ठ ने खूब सराहा।
धन्य भरत तुम राज न चाहा।।
वन के पुष्प वृक्ष फल गाते।
भरत श्रेष्ठ की कथा सुनाते।।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451